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• “रोग-निवारण रहस्य". .प्रभाव कथा-२७ : उज्जयिनी नगरी के राजा राजशेखर के पुत्र राजहंस की यह रमणीय-कथा है । साथ-साथ कर्म-विपाक के महत्त्व को समझने वाली जैन धर्म के प्रति दृढ़ एवं श्रद्धालु मानगिरी के राजा की सुपुत्री कलावती की अटूट-श्रद्धा की कथा भी है । अपने पिताश्री के दुर्बुद्धि के कारण राजकुमारी कलावती का विवाह राजहंस के साथ सम्पन्न हुआ | राजहंस को उसकी सौतेलीमाता ने भयंकर-रोग उत्पन्न हो ऐसी दुर्बुद्धि से विषाक्त भोजन कराया परन्तु जिन-शासन के प्रति अटूट-श्रद्धा रखने वाली कलावती ने भक्तामर स्तोत्र के ४१ वें श्लोक का स्मरण किया । अतः चक्रेश्वरी देवी ने चमत्कारिक रूप से रोग-निवारण का उपाय बताया जिससे रोगदूर हो गया एवं धन की भी प्राप्ति हुई तथा कलावती की महान जैन-शासन के प्रति श्रद्धा की भी विजय हुई । इस कथा के विश्लेषण से पता चलता हैं कि देवी ने खुद रोग दूर न किया, पर रोग दूर करने का उपाय बताया । इस श्लोक के पाठ करने से रोग दूर हो जाता हैं | इसका अर्थ हम यह भी समझ सकते हैं कि इस गाथा मंत्र की आराधना से असाध्य-रोग निवारण की योग्य औषधि अनायास ही प्राप्त हो जाती हैं; जिससे रोग का निवारण शीघ्र हो जाता हैं ।
• जाप-संख्या रहस्य . •प्रभाव कथा-२८ : दिल्ही के बादशाह जलालुद्दीन के समय की यह कथा हैं । अजमेर-दुर्ग के पास एक छोटे से गाँव के राज-पुत्र रणपाल को अजमेर के मीर ने गुनाह करने के जुर्म में उसे एवं उसके पुत्र को गिरफ्तार कर दिल्ही-दरबार में भेज दिया; वहाँ उन्हें कारागृह में बंद कर दिया गया । रणपाल स्वभाव से बहुत सरल था तथा जैन साधु भगवंतो के सत्संग में भी रहता था । उसे नमस्कार महामंत्र एवं भक्तामर स्तोत्र पर भी अटूट श्रद्धा थी । कारागृह में भी रणपाल ने इस स्तोत्र की ४२ वीं गाथा का जाप जारी रखा । तन्मयता से श्रद्धा पूर्वक जाप करते-करते दस-हजार जाप पूर्ण किए तब तुरंत एक देवी प्रकट हुई; ऐसे समय में देवी को प्रत्यक्ष देख कर रणपाल आश्चर्यचकित हो गया । रणपाल ने देवी से अपना स्वरूप प्रकट करने की आग्रह-पूर्वक विनंती की तब देवी ने अपना परिचय देते हुए कहा कि महा-प्रभाविक श्री भक्तामर-स्तोत्र का स्मरण करने वाले भक्तजनो की रक्षा करने वाली आदीश्वर-परमात्मा की अधिष्ठात्री श्री चक्रेश्वरी देवी की मैं सेविका देवी हूँ । रणपाल प्रसन्न हुआ एवं देवी की सूचना से कारागृह से मुक्त हुआ । रणपाल अजमेर छोड़ कर चित्रकूट में अपने परिवार के साथ आनन्द से रहने लगा ।
गरूड़वाहिनी देवी चक्रेश्वरी इस स्तोत्र की महान अधिष्ठायिका हैं और आज भी अपनी सेविका देवीयों के द्वारा भी चमत्कार का सर्जन करती हैं। भक्तामर-स्तोत्र के अनेकानेक चमत्कारिक अनुभव कर रहे महान श्रद्धालु आत्माएं अपने जीवन को आज भी धन्य बना रहे हैं।
इस अंतिम महिमा कथा के ४२ वें श्लोक का पाठ की संख्या दस हजार बताई हैं; यह ध्यान में रखे । “सम्पूर्ण-आराधना के लिए जाप-संख्या की पूर्ति अति-आवश्यक हैं।" इस महा प्रभाविक भक्तामर-स्तोत्र की २८ महिमा कथाओं के माध्यम से हमने दैवीदुनिया एवं दैविक-प्रभाव के विषय में बहुत कुछ जाना एवं समझा भी ।
श्रद्धा-भक्ति एवं एकाग्रता से यह महा-प्रभाविक श्री भक्तामर-स्तोत्र भक्तजनों को अपने प्रेय-प्राप्ति के साथ-साथ श्रेय की प्राप्ति भी कराता हैं।
HABAR
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