________________
भक्तामर के कितने ही आराधक वर्तमान कालमें ऐसा क्रम निभा नहीं सकते है । कुछ लोग तो नवकार के बाद सीधा ही भक्तामर कंठस्थ करते है । ऐसे लोगो का व्यवहार देखकर अपने को ही “धर्म का सर्वस्व' समझने वाले कुछ महानुभाव-महात्मा ऐसे आराधकों की आलोचना शुरू कर देते है । हम स्वयं भी इसी मान्यता के हैं कि भक्तामर के आराधकों को आगे की आराधना करनी चाहिये... अवश्य करनी चाहिये । परन्तु भक्तामर को ही अग्रता देनेवाले पर टूट पड़ना यह हमारा कार्य नहीं है । शास्त्र तो कहते हैं कि एक भी जिनवचन किसी भी आत्मा का उत्थान कर सकता है । इस लिये ही जिनवचन के सार से गर्भित ऐसे भक्तामर स्तोत्र के विशेष आदरवाले की हम आशातना कर नहीं सकते हैं । परन्तु हमारा सुझाव है कि भक्तामर का आराधक अपनी आराधना को क्रमशः विकसित करें । जैसे बहुत-सी आत्माएँ प्रतिवर्ष गुरूवंदन करने जाती हैं, परन्तु सर्व तीर्थों की या कल्याणक भूमि की यात्रा उन्होंने एक बार भी नहीं की होती है, फिर भी उनकी प्रतिवर्षीय गुरूवन्दना को हम निरर्थक नहीं मानते है । इस प्रकार भक्तामर के आराधक अपने जीवन में श्रावक के अन्य व्रत-नियमों और आराधना का अनुपम आदर रखें यही कहने का हमारा आशय है।
• आराधना के प्रकार भक्तामर स्तोत्र पर लिखा गया तंत्र,मंत्र,यंत्र साहित्य विशाल है । भक्तामर के साथ संगत माने गये तंत्र,मंत्र और यंत्र की आराधना यह भी भक्तामर की ही आराधना है । अतः भक्तामर की आराधना के मार्ग अनेक हैं, विविध हैं । __महामंत्र नवकार एक स्मरण रूप है परम आराध्य मंत्र है । फिर भी महापुरुषों ने नवकार मंत्र आधारित अन्य अनेक यंत्र और तंत्र बतलाये हैं। और उसकी आराधना की विधियाँ बतलाईं हैं। फिर भी उस महामंत्र की आराधना के दो तीन उल्लेख हमारे लिये ध्यानाकर्षक हैं :
"अट्टेवय अट्ठसया , अट्ठसहस्सं च अट्ठ कोडिओ जो गुणई अट्ठ लखे, सो तईय भवे लहई सिद्धिं ।'
(नमस्कार लघुकुलक : नमस्कार स्वाध्याय-प्राकृत पृ. ४३८) जो आत्माएँ ८ कोटि, ८ लाख, ८ हजार आठसौ आठ नवकार गिनते हैं वे तीसरे भव में मोक्ष प्राप्त करते हैं । इस प्रकार आठ क्रोड़, आठ लाख, आठ हजार, आठसौ और आठ नवकार का जाप श्रावक जीवन की सुंदर आराधना है ।
इसी प्रकार दूसरा उल्लेख नमस्कार स्वाध्याय-गुजराती विभाग के “नमस्कार बालावबोध" प्रकरण के प्र. ५४ में है ।
नवकार गिननेवाले ने यदि पूर्वजन्म में आयुष्य न बांधा हो तो वह नरक और पशुगति में नहीं जाता है । एवं यदि एक लाख नवकार का जाप, पुष्पादिक से नियमित रूप से करें तो वह तीर्थंकर नाम कर्म उपार्जित करता है अतः ये तीनों आराधनाएँ नवकार मंत्र के आराधक के लिये अवश्य आदरणीय हैं । हम तो ऐसा भी मानते हैं कि भक्तामर की भी यदि संपूर्ण स्तोत्र की कोई ऐसी महिमामय बात हो तो भी पहले पूर्व-सेवा के रूप में, इन तीनों में से नवकार मंत्र की एक आराधना तो अवश्य कर लें।
ऐसी भक्तामर की समस्त आराधना क्या हो ऐसी जिज्ञासा हमारे मनमें लंबे अर्से से थी । एक बार वडाली का एक ज्ञानभंडार देखते हुए हमारे देखने में एक प्रत आई थी । इस प्रत में उल्लेख है कि सवा लाख बार यदि भक्तामर का जाप किया जाय तो भक्तामर अवश्य सिद्ध होता है । मैंने मेरे पूज्य गुरुदेव से यह बात जब सुनाई तब उन्होंने मुझे कहा था कि मेरा सवा लाख भक्तामर का जाप हो चुका है। हम जानते हैं कि पू. गुरूदेव विक्रमसूरीश्वरजी म. के जीवन में भक्तामर सिद्ध था, उसकी प्रतीति दिलानेवाली कई घटनाएँ बन चुकी हैं और बहुत से चमत्कार बहुत लोग अनुभव कर सके हैं।
इस विषय की अधिक चर्चा हम आगे करेगें । परंतु यह बात निश्चित है कि भक्तामर स्तोत्र का सवा लाख पाठ होना आवश्यक है । इस सम्बन्ध में अन्य कोई विशेष सूचना हम किसी ग्रंथ से प्राप्त कर नहीं सके हैं अथवा किसी ऐसे दूसरे अनुभवी व्यक्ति से मिल नहीं सके हैं । फिर भी भक्तामर स्तोत्र का सवा लाख पाठ करनेवाले को चाहिये कि वह निम्न विशेष विधानों को ध्यान में रखें।
मंत्र शास्त्र के विशारद जाप किस गति से करना स्पष्ट करते है । मंत्र तेज गति से न गिनना चाहिए । बहुत आहिस्ते भी न गिनना चाहिए । पर मंत्र मध्यम गति से ही गिनना चाहिए । शीघ्रता एवं विलंबित गति की सबकी अपनी व्याख्याएं अलग होती है ! ग्रंथ कारो का आदेश है कि जाप को अपने प्राणों की सहज गति के समान बनाना चाहिए । चलते समय यदि हम हमारी गति से तेज चलते है तो दमभर जाता है ! बहुत परिश्रम होता है ! थकावट लग जाती है। यदि हम हमारे चाल से बहुत धीरे चलेंगे
KAKKAKKAKKAKKAKKAKKKK आराधना-दर्शन
आराधना-दर्शन
२३३ www.jainelibrary.org
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only