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भक्तामर यंत्र - ३९
Bhaktamara Yantra-39
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कुन्ताग्रभिन्नगजशोणितवारिवाह
“न ही अहँ णमो महुरसवीणं।"
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स्त्वत्पादपङ्कजवनाश्रयिणो लभन्ते ॥३९॥ |
नमः शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा।”
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ज नमो चक्रेश्वरी देवी चक्रधारिणी जिन शासनसेवाकारिणी
वेगावतारतरणातुरयोधभीमे ।
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क्षुद्रोपद्रवविनाशिनी धर्मशान्तिकारिणी। युद्धे जयं विजितदुर्जयजेयपक्षा
पण जा
ऋद्धि-ॐ ह्रीं अर्ह णमो महुरसवीणं । मंत्र-ॐ नमो चक्रेश्वरी देवी चक्रधारिणी जिनशासनसेवाकारिणी क्षुद्रोपद्रवविनाशिनी
धर्मशान्तिकारिणी नमः शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा । प्रभाव-युद्ध का भय मिटता है और शान्ति प्राप्त होती है ।
युद्ध में शस्त्र का मार लगता नहीं है, राज्य से धन लाभ होता है | Acquiring peace, removing fear of war and weapons and
getting wealth from the State.
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