________________
• प्रभाव कथा-रहस्य दर्शन.
भक्तामरकी सबसे प्राचीन टीका वि.सं. १४२६ में विरचित है । रचनाकार भक्तामर के चमत्कारों के बारे में अपने पूर्वाचार्यो के मुंह से सुनी अनेक चमत्कारिक महिमा कथाएं लिखी है । क्या इन महिमा कथाओं का भी भक्तामर के रहस्योद्धाटन में कुछ योगदान है ?
जरूर; भक्तामर तथा अनेक आधारित मंत्रो की आराधना एवं साधना के कंइ रहस्य महिमा कथाओं में नजर आता है । उन कथाओं का सम्यक् पृथक् करण जरूरी है। यहाँ पाठकों की जानकारी के लिये महिमा कथाएं तो अति संक्षेपसे दी गई है; पर भक्तामर के रहस्यों का यथा शक्य उद्घाटन किया गया है । पाठक गण मूल कथाएं भी पढे एवं रहस्यों को प्राप्त करने की चेष्टा करें।
• “जल-अभिमंत्रण रहस्य" . •प्रभाव कथा-१ : श्री हेम-श्रेष्टि मालवा के राजा भोज के समय में हुए ऐसा माना जाता है । श्री हेम श्रेष्टि की भक्तामर की पहली एवं दूसरी गाथा की आराधना से प्रसन्न होकर श्री चक्रेश्वरी देवी प्रकट हुई एवं उसे वरदान दिया। श्री हेम श्रेष्टि न देवी के वरदान से भक्तामर के प्रथम दो श्लोकों का स्मरण कर उसके अभिमंत्रित जल से शीघ्र ही राजा को दैवी पाश से मुक्त किया। इस कथानुसार पानी को अभिमंत्रित करने की बात अपूर्व हैं । भक्तामर के अन्य मंत्रों से भी जल अभिमंत्रित होता है परन्तु अभिमंत्रण की विधि गूढ होती है । इस गूढता की स्पष्टता के लिए सूरिमंत्र कल्प पृष्ठ-२२ पर अन्य स्थान से उदृधत करके जानकारी दी गई है । "जो आचार्य भगवंत सूरि-मंत्र सिद्ध कर चुके हैं वे "कवोष्ण जल' (गुनगुना जल) मंगा कर अपने सहस्रार - चक्र के पास के चन्द्र-मंडल के अमृत का जल-पान अमृत ध्यान द्वारा प्रक्षेप करें तो वह जल अमृत के (दायाद) भाई जैसा हो जाता है, बाद में सूरि-मंत्र से अभिमंत्रित करना चाहिए।"
इस तरह जल अभिमंत्रण में शक्ति का संचार करने का गूढ तत्त्व है । ये तत्त्व विभिन्न महा-पुरुष विभिन्न रूप से प्रकट करते हैं । श्री कल्याण मंदिर स्तोत्र में उल्लिखित पंक्ति “पानीयमपि अमृतं इति" भी ध्यान में रखने योग्य है । देवता खुद शक्तिशाली होते हुए भी चमत्कारिता की अंतिम फलदायकता के लिए जल-अभिमंत्रण जैसे उपाय बताते रहते हैं, यह ध्यान में रखने योग्य है और यही उपाय तंत्र मंत्र को सहकारी बनते है ।
• “जाप-समय रहस्य". प्रभाव कथा-२ : सुमति नाम के श्रावक को उपकारी गुरू-भगवंत द्वारा श्री भक्तामर स्तोत्र की प्राप्ति हुई। वह प्रति दिन नियम पूर्वक त्रिकाल भक्तामर का जाप बडी श्रद्धा से करता था । समुद्र में तूफान उठते समय भक्तामर स्तोत्र का पाठ करते वक्त चौथे-श्लोक के पठन से चक्रेश्वरी देवी प्रकट हुई एवं देवी ने पाँच रत्न सुमति-श्रावक को दिये । इस कथा के द्वारा आराध्य ऐसा श्री भक्तामर स्तोत्र का त्रिकाल जाप करने की बात दृढ होती है । संध्या काल का समय ध्यान एवं आराधना तथा जप एवं जाप के लिए इतना ज्यादा उपयुक्त है कि उस बेला में स्वल्प प्रयत्न से भी की गई साधना शीघ्र फलदायक बनती है । प्रसन्न हुए देव भी ऐसी चीज दे जाते हैं कि जिसका स्वतंत्र रूप से प्रभाव होता है । कदाचित् मंत्र जाप का एवं ध्यान-स्मरण वगैरह के लिए संध्याकाल का समय इतना पवित्र माना गया है कि उस समय में स्वाध्याय एवं शास्रों का पाठ करने की भी मनाई करने में आई है।
• "चमत्कार रहस्य". • प्रभाव कथा-३ : पाटलीपुत्र राज्य का सुधन नाम का दृढ श्रावक, वहाँ के राजा भीम को दृढ श्रावक बनाता है एवं धुलिपा नाम के योगी द्वारा नगर में किए गए उपद्रव को भक्तामर की सातवीं-गाथा के जाप से प्रकट हुई देवी चक्रेश्वरी की सहायता से दूर करता है । श्रावक सुधन योगी को उचित शिक्षा मिले इस हेतु चक्रेश्वरी देवी द्वारा अन्य मन्दिरों पर धूल की बरसात करवा कर फिर उसे दूर भी करवाता है । इस चमत्कार से अनेक आत्माएँ भक्तामर स्तोत्र का नित्य-पाठ करने लगी।
“चमत्कार को नमस्कार" वाली युक्ति सर्व-मान्य है । एक बार चमत्कार होने से जन-साधारण धर्म-मार्ग की ओर प्रेरित होता है, अंततः उनको चमत्कार के व्यामोह से छुडवाकर आत्मिक साधना के मार्ग पर लाया जा सकता है । इसलिए इस स्तोत्र की चमत्कारिता के प्रति अनादर करने जैसा या इस पर प्रश्नचिन्ह लगाने जैसा कुछ नहीं है ।
१९४
रहस्य-दर्शन
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org