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• “यम-नियम रहस्य". प्रभाव कथा-४ : इस महिमा कथा में भक्तामर के आठवें एवं नौवें श्लोकों की महिमा दर्शाई गई है । इस कथा के मुख्य पात्र ने जीव-दया के बोध से प्रभावित होकर जीव-हत्या न करने का नियम लिया एवं नित्य भक्तामर-स्तोत्र का पाठ; भाव एवं श्रद्धा पूर्वक करना निरन्तर जारी रखा । आखिर में वे अनेक प्राणीयों एवं प्रपंचधारियों के भय से मुक्त हो गये, पर जब प्यास से अत्यंत व्याकुल हुए तब चक्रेश्वरी-देवी ने जल देकर उनकी जिन्दगी बचाई । जन-सामान्य को प्रभावित करने के लिए एक ही दिन में चक्रेश्वरी-देवी की मदद से आदीश्वर-परमात्मा का जिन मंदिर बनवाया । श्री भक्तामर-स्तवन के प्रतिदिन पाठ प्रारंभ के साथ व्रतनियम ग्रहण करना अति आवश्यक है । यम-नियम का पालन संकल्प-बल को बढाता है एवं पुण्य में वृद्धि करता है । यम एवं नियम के बिना कोई भी मंत्र का फल नहीं मिलता है । यम-नियम संकल्प-बल की वृद्धि तो करते ही है साथ ही जिनेश्वर-परमात्मा की आज्ञा के पालन रूप भी होते है । इसीलिए भक्तामर स्तोत्र के आराधकों को अपने जीवन को यम एवं नियम वाला बनाना चाहिए।
.“विद्या रहस्य" . श्री भक्तामर स्तोत्र के दसवें श्लोक में भक्तामर आधारित कथा का वर्णन नहीं है फिर भी इसमें बताये गये अर्थ के अनुसार नमि-विनमि विद्याधरों का संक्षिप्त वृत्तांत बताया गया है । पहले हमने जो बात विद्याधरों की विद्या की कही है वह स्मरणीय है । श्री धरणेन्द्रने ऋषभदेव प्रभु का वैक्रिय रूप लेकर नमि एवं विनमि की शान्ति के लिए ४८,००० मंत्र प्रदान किए थे एवं रोहिणी प्रमुख विद्या-देवीयों को आम्नाएँ सहित प्रत्यक्ष कर के दिये थे । अंततोगत्वा विद्याधरों के कुल की स्थापना हुई एवं नमि-विनमि दो क्रोड मुनिवरों के साथ शत्रुजय-तीर्थ पर मोक्ष सिधारे तथा ऋषभदेव भगवान रूप स्वामी की सेवा से प्रभु के सेवक नमि-विनमि श्री ऋषभदेव भगवान जैसे सिद्धि-पद को प्राप्त हुए । यहाँ भी विद्या एवं मंत्र को एक ही मानने में आया है। विद्याधर लोकों में भी सोलह विद्या-देवीओं को प्रत्यक्ष करने की आम्नायें थी ऐसा समझा जाता है ।
• "वीणा-वादन रहस्य". •प्रभाव कथा-५ : प्रस्तुत पांची कथा कपर्दी श्रावक की है । कपर्दी श्रावक श्री भक्तामर स्तोत्र एकाग्र चित्त से शुद्धि पूर्वक वीणा के साथ तन्मयता से गाता था । एक बार ग्यारहवीं गाथा गाते वक्त श्री चक्रेश्वरी देवीने प्रकट होकर वरदान दिया कि संध्या समय कामधेनु गाय तुम्हारे द्वार पर आयेगी । देवी के वचनानुसार कामधेनु गाय उनके घर पर आयी तथा ३१ घडे दूध से भर दिये, जो बाद में स्वर्ण रूप में परिवर्तित हो गए । इस घटना के बाद कपर्दी श्रावक ने पुनः कामधेनु गाय को उसके घर भेजने का आग्रह किया, ताकि कामधेनु गाय के दूध की खीर से राजा आदि को भोजन कराने एवं पूज्य आचार्य भगवंत को भी खीर वहोराने का मनोरथ पूर्ण हो सके। देवी-चक्रेश्वरी ने अपने भक्त का यह मनोरथ भी पूर्ण कर सबको आश्चर्य चकित कर दिया ।
पू. आचार्य हेमचन्द्र सूरीश्वरजी ने "काव्यानुशासन ग्रन्थ' में "यैः शांतराग रूचिभिः" वाले भक्तामर स्तोत्र के बारहवें श्लोक को उदाहरणार्थ लिया है; वे निर्विवाद ऐतिहासिक महात्मा थे । उनकी भक्तामर स्तोत्र के प्रति भक्ति एवं निष्ठा स्वाभाविक थी। श्री चक्रेश्वरी देवी ने ही कामधेनु का रूप लिया ऐसा इस कथा के आकलन से लगता है । फिर भी जैन परम्परा में कामधेनु का क्या स्वरूप है ? यह शोध का विषय है एवं कामधेनु के दूध से खीर बनी एवं उसे सबने खायी, यह वार्ता भी विचारणीय है। वैसे यह कथा संशोधन के लिए भी दिशा-निर्देशन करती है ।
."भावना रहस्य". .प्रभाव कथा-६ : बारहवें श्लोक की महिमा-कथा में अंग-देश चम्पापुरी के राजा कर्ण के मंत्री सुबुद्धि का उल्लेख है । मंत्री सुबुद्धि जैन धर्म में रत था, भक्तामर स्तोत्र के प्रति आसक्त तथा धर्म में दृढ श्रद्धा रखने वाला था । वह भक्तामर का नियमित आराधक था । हमारी आराधना सुंदर हो और यदि काल-बल अनुकूल हो तो देवी-देवता अवश्यमेव प्रत्यक्ष होते हैं । देवी चक्रेश्वरी ने प्रकट होकर जादूगर किमियागर जैसे चेटक को दंड स्वरूप शिक्षा दी।
इस कथा की समाप्ति पर लिखा है कि "सर्वे परम दैवतमिव स्तोत्रं पेठः' ऐसे अनेक चमत्कारों के बाद जन-साधारण परमदेवता स्वरूप इस स्तोत्र का पठन-पाठन करने लगे । इस स्तोत्र की प्रसिद्धि इस में रहे हुए मंत्रों की बहुलता से हुई एवं इस स्तोत्र के प्रति किस प्रकार विनय एवं श्रद्धा प्रकट करनी चाहिए, यह स्पष्ट बताने में आया है | __इस कथा में कहा है कि “यादृशी भावना-यस्य; सिद्धिः भवति तस्य तादृशी' जैसी जिसकी भावना होगी वैसी ही उसको सिद्धि प्राप्त होगी।
KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX रहस्य-दर्शन
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