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प्रेत आदि के असर से मुक्त हो गई । अभिमंत्रित-जल-पान तो करने में आता है परन्तु अभिमंत्रित जल को परमात्मा के प्रक्षाल की तरह आँखों पर लगाने की विधि समझने योग्य है । आचार्यश्री ने इस महान कार्य को करने के पश्चात् महान जिन-शासन की प्रभावना करने के उद्देश्य से अवधूत का वेश भी धारण किया था । कितने ही आचार्य-भगवंत गाथा २० से २५ (छ: गाथा) के आराध्य-मंत्र को सूरि-मंत्र ही मानते है । कितने ही आचार्य श्री इन छ: गाथाओ के आराध्य-मंत्र, चिंतामणी-मंत्र को मानते है । आचार्य भगवंत श्री मानतुंगसूरीश्वरजी की अन्य कृति भयहर स्तोत्र “नमिऊण-स्तोत्र" हैं । इस स्तोत्र में चिंतामणी-मंत्र का संगोपन है । चिंतामणी-मंत्र जैन शासन का महान-मंत्र हैं, स्पष्ट रूप से श्री पार्श्वनाथ-प्रभु को उद्देश्य में रख कर इस मंत्र की रचना की गई हैं । इन गाथाओं का विशिष्ट प्रभाव हैं ऐसा मानना चाहिए।
श्री नमिऊण-स्तोत्र में तो क्रम बद्धता से इस चिंतामणी मंत्र की उपलब्धता है, परन्तु भक्तामर की गाथा नं. २१ एवं २२ में सूचना के बतौर इस मंत्र की उपलब्धता का प्रमाण हैं ऐसा लगता हैं । २१ वीं गाथा के तीसरे, छब्बीसवें एवं सैंतालीसवें अक्षरों को अनुक्रम से पढ़े तो “व षह" पढ़ा जा सकता है । इन अक्षरों के आधार पर चिंतामणी-मंत्र की सूचना को समझा जा सकता हैं । इसी गाथा (२१) के ३८,२६,४७ एवं ४८ वें अक्षरों को क्रम-बद्धता से पढ़े तो "वि ष हर" पढ़ा जा सकता हैं । ठीक इसी प्रकार गाथा २२ वीं में ४३ एवं ३८ वे अक्षरों को पढ़ने से "पास" शब्द की सूचना उजागर होती हैं । अब थोड़े और अक्षरों को तोड़-मरोड़ कर पढ़े तो इसी २२ वीं गाथा में से "स्फुलिंग" शब्द पढ़ा जा सकता है, एव “नमिऊण" शब्द भी बन सकता हैं । इस तरह करीब-करीब "चिंतामणी मंत्र' इन गाथाओ में से पढ़ा जा सकता है अतः इन गाथाओं का अनुपम महत्त्व सिद्ध होता हैं ।
• “गुरू आदेश रहस्य" . प्रभाव कथा-१७ : गजरात राज्य के वद्ध भीम-देव के समय की बात हैं । अणहिलपर-पाटण शहर में बनी हुई घटना का वर्णन यहाँ दिया जा रहा हैं | चणिक नाम का श्रावक चनें बेच कर अपनी जीविका चलाता था । जिन-भक्ति से ओत-प्रोत यह श्रावक श्री भक्तामर-स्तोत्र की २६ वी गाथा के भाव-पूर्वक आराधना से अपार-सम्पत्ति का मालिक बन गया । आराधना के प्रभाव से व्यापार हेतु लाये गये तीन कोठी भरे हुए चनें स्वर्ण रूप में परिवर्तित हो गये । इस कथा से गुरू-भगवंत के आदेश, मंत्र-साधकों के लिए विशेष उपयोगी है; ऐसा सिद्ध होता है | चणिक श्रावक की आराधना में (१) “तुभ्यं-नमो" श्लोक (२) १०८ नमस्कारमहामंत्र (३) ब्रह्मचर्य का दृढ़ पालन (४) पंचासरा पार्श्वनाथ-भगवान एवं आदीश्वर-परमात्मा की भक्ति (५) श्री महालक्ष्मीजी की आराधना; ये पाँचो गुरू-आदेश महान सहायक बने थे ।
__ भक्तामर स्तोत्र का जाप करने वाले आराधको को प्रति-दिन एक माला श्री नमस्कार-महामंत्र की अवश्य गिननी चाहिए तथा दारिद्रय को दूर करने के लिए श्री महाक्ष्मी देवी की उपासना अवश्यमेव करनी चाहिए । श्री महालक्ष्मी-देवी, श्री चक्रेश्वरी देवी की सखी देवी हैं। श्री चक्रेश्वरी माता भक्तामर के आराधकों की भक्ति से प्रसन्न होकर भक्त के दारिद्रय को दूर करने के लिए श्री महालक्ष्मी-देवी को सूचित करती हैं । अंततः आराधना से प्राप्त लक्ष्मी का सदुपयोग कर चणिक श्रावक ने श्री ऋषभदेव भगवान के नूतन-जिनालय का निर्माण कराया एवं श्री महालक्ष्मी माता के मंदिर का भी जिर्णोद्वार कराया ।
इस श्लोक में चार बार “तुभ्यं" आने से चार बार "यं' अक्षर आया हैं | बीजाक्षर कोष में "यकार" शब्द (१) मित्र-मिलन (२) इष्ट प्राप्ति (३) ध्यान-साधना एवं सात्त्विकता की जागृति के लिए बहुत ही उपयोगी बीजाक्षर माना गया हैं । यहाँ पर लक्ष्मी प्राप्ति का अर्थ कोई भी प्रकार की इष्ट प्राप्ति (मनोवांछित पूर्ण होना) ही समझना चाहिए । इस प्रकार करने से इस गाथा एवं कथा के प्रभाव का मेल होता हैं ।
• “अट्ठम आराधना रहस्य" . •प्रभाव कथा-१८ : गोदावरी नदी के किनारे प्राकृतिक छटा के मध्य में बसा हुआ प्रतिष्ठानपुर नगर के राजा हाल की कथा का यहाँ वर्णन करने में आया हैं । राजा हाल को कोई पुत्र नहीं था । पुत्र प्राप्ति के लिए उसने अनेक साधना की एवं मन्नत मानी किन्तु उसकी यह मुराद पुरी नहीं हुई । आखिरकार वे त्यागी मुनि-भगवंत के पास गये और उन्होनें राजा पर कृपा कर भक्तामर स्तोत्र की नित्य जाप की विधि बताई । इस महान-जाप की आराधना श्रद्धापूर्वक करने से तीसरे ही दिन माता चक्रेश्वरी-देवी, उसकी अपूर्व भक्ति से प्रसन्न होकर प्रकट हुई एवं एक दिव्य पुष्प-माला राजा हाल को अर्पित की । इस दिव्य पुष्प-माला को रानी के कंठ
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रहस्य दर्शन XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX
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