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(२) महान सिद्धि प्राप्त हो सकती है। अतः यह मंत्र सिद्धिकर मंत्र कहा जाता है। और एक कल्प में उनको ३२०० दफे गिनकर सिद्ध करने का विधान है। और भी आम्नाय इस मंत्र की हो सकती है !
• मंत्र - ५ "सारस्वत विद्या" ___“ॐ ह्रीं चउद्दसपुव्वीणं, ॐ हीं पयाणुसारीणं, ॐ ही एगारसंगधारीणं, ॐ ह्री उज्जुमईणं, ॐ ह्रीं विउलमईणं नमः स्वाहा - यह मंत्र के जाप से सरस्वती देवी प्रसन्न होती है और विद्या की वृद्धि होती है । पहले बारहवीं गाथा की माला फेरनी चाहिए । रेशमी श्वेत-शुद्ध वस्र पहनकर स्फटिक की माला से एकसो आठ दफे जाप करना चाहिए ।
यहाँ से प्रारंभ होते आठ मंत्र आठ महाविद्या है भक्तामर की गाथा १२ से २० तक का पाठ महान प्रभाव पूर्ण है ये गाथाएँ सूरिमंत्र युक्त है । इन गाथाओं का सामान्य कल्प यहाँ है पर विशेष कल्प सूरिमंत्र के आराधक आचार्य भगवंतो से ही मिलाना चाहिए । मंत्र शास्त्र की मर्यादा है अतः हम यहाँ उनका विशेष विवेचन नहीं करते हैं। वर्तमान काल में भी कल्पवृक्ष जैसा कार्य यह महाविद्याओं से हो सकता है !
• मंत्र - ६ “रोगापहारिणीविद्या"... “ॐ ह्रीँ आमोसहिलद्धीणं, ॐ हाँ विप्पोसहिलद्धीणं, ॐ हीं खेलोसहिलद्धीणं, ॐ हाँ जल्लोसहिलद्धीणं, ॐ हाँ सव्वोसहिलद्धीणं नमः स्वाहा .." - प्रथम तेरहवीं गाथा की माला फेरने के बाद इस विद्या का जाप (सुबह - दोपहर और शाम को) त्रिसंध्या को १०८ दफे करना ।
• मंत्र - ७ "विषापहारिणी विद्या" “ॐ ह्रीँ आसीविसलद्धीणं, ॐ हीं खीरासवलद्धीणं, ॐ ह्रीं महुयासवलद्धीणं, ॐ हीं अमिआसवलद्धीणं नमः स्वाहा ।।" -- यह मंत्र के जाप के पूर्व चौदहवीं गाथा की माला फेरनी चाहिए और उसके बाद इस विद्या का (१०८) एकसौ आठ दफे जाप करने का विधान है । यदि किसी भी मनुष्य को जहर चढा हो तो उसे १०८ दफे इस मंत्र से मंत्रित पानी पिलाने से जहर उतर जाता है ।
• मंत्र - ८ "त्रिभुवनस्वामीनी विद्या"
“ॐ ह्रीं श्रीं क्ली असिआउसा चुलु चुलु कुलु कुलु मुलु मुलु इच्छियं मे कुरू कुरू स्वाहा ।।" - इस मंत्र के जाप के पहले चौदहवी गाथा की माला फेरनी चाहिए । इस के बाद प्रवाल की माला से प्रतिदिन तीन हजार इस मंत्र का जाप करने से सभी इच्छित वस्तु की प्राप्ति होती है ।
इस मंत्र का सवा लाख जाप कर के मंत्र को सिद्ध करें । पश्चात् पुत्र अथवा सम्पदा प्राप्ति के लिए मन में दृढ संकल्प करके प्रतिदिन त्रिकाल एक एक माला जपने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है ।
• मंत्र - ९ "स्वप्न द्वारा शुभाशुभ जानने का मंत्र" "चउवीस तीर्थंकर तणी आण । पञ्चपरमेष्ठि तणी आण, चउवीस तीर्थंकर तणइ तेजि पञ्चपरमेष्ठि तणइ तेजि, ॐ अह उत्पत्तये स्वाहा ॥" - विधि - (१) यह मन्त्र प्रतिदिन इक्कीस दफे जपने से धन-धान्य, शिष्य - प्रशिष्य परिवार की वृद्धि होती है । (२) रविपुष्य
र सगंधित तेल-चन्दन आदि अपने शरीर पर विलेपन करें । सगंधित पष्यों की माला पहनें । जहाँ स्त्री का स्पर्श न हो, वैसे एकान्त स्थान में भूमि को लीप-धोकर उस पर खड़े होकर मन में कार्य का विचार करके स्फटिक की माला से चारों दिशाओं में क्रमशः कार्योत्सर्ग में इस मन्त्र की एक एक माला जपें । आधी रात बीत जाने पर मौनपूर्वक बिछाने में सो जावें । रात की पिछली दो घडी रहे, स्वप्न आवे जिस कार्य का चिन्तन किया हो, उसका शुभाशुभ स्वप्न में मालुम होता है । स्वप्न आने के बाद सोये नहीं।
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रहस्य-दर्शन
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