________________
22
भद्रबाहुसंहिता
विद्वान होते हैं। यदि सीधे और चौकोर मस्तक के ऊपरी भाग में कोण (Angles) बन रहे हों और गोलाई लिये हो तो व्यक्ति हठीला और दढ़ होता है। यदि गोलाई न हो और सीधा हो तो विचार और कर्म में अकर्मण्य होता है। ऊंचा, सीधा और आभापूर्ण ललाट लेखकों और कवियों और अर्थशास्त्रियों का होता है। चौड़ा मस्तक होने से व्यक्ति जीवन में दुःखी नहीं होता।
आभा-मस्तक की आभा का वही महत्त्व है, जो किसी सुन्दर बने मकान में रंगाई और पुताई का होता है । आभा रहने से व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास दृष्टिगोचर होता है। जिस व्यक्ति का मस्तक आभा-रहित होता है, वह दरिद्र, दुःखी और अनेक प्रकार के रोगों से पीड़ित रहता है।
ओठों पर विचार करते समय कहा गया है कि मोटे ओठों वाला व्यक्ति मूर्ख, दुराग्रही और दुराचारी होता है । आर्थिक दृष्टि से भी यह व्यक्ति कष्ट उठाता है । छोटे मुंह में अधिक पतले ओठ कंजूसी, दरिद्रता और चिन्ता के सूचक हैं । सरस, सुन्दर और आभायुक्त पतले ओठ होने पर व्यक्ति विद्वान्, धनी, सुखी और प्रिय होता है । गोलमुख में गर्दन गोल और दृष्टि निक्षेप चुभता हुआ होने पर व्यक्ति को अविचारी और स्वेच्छाचारी समझना चाहिए। ओठों में ढिलाव, लटकाव और मुड़ाव अनाचार और अविचार के द्योतक हैं। ढीले और लटके
ओठ होने से व्यक्ति का शिथिलाचारी, निर्धन और चंचल प्रकृति का होना व्यक्त होता है। सरस ओठ होने से दयालुता, परोपकार वृत्ति, सहृदयता एवं स्निग्धता व्यक्त होती है । रूक्ष ओठ अजीर्ण, ज्वर, रोग एवं दारिद्रय को प्रकट करते हैं।
दांतों के सम्बन्ध में विचार करते हुए बताया गया है कि चमकीले दांत वाला व्यक्ति कार्यशील और उत्साही होता है। छोटे होने पर भी पंक्तिबद्ध और स्वच्छ दांत व्यक्ति के विचारवान और उत्साही होने की सूचना देते हैं। ऊपर के दांतों में बीच के दो दांत जो अपेक्षाकृत बड़े होते हैं-अपेक्षाकृत अधिक महत्त्वपूर्ण हैं । जिस मुख में ये दांत स्वभावतः खुले रहते हों, स्वच्छ और आभायुक्त हों एवं मुखामा मनोज्ञ हो तो उस व्यक्ति में शील, सौजन्य और नम्रता का गुण अवश्य होता है । उक्त प्रकार के दांत वाला व्यक्ति व्यापार में प्रभूत धनार्जन करता है।
गर्दन के पिछले भाग को पिछला मस्तक और अगले भाग को कण्ठ कहते हैं । पिछले मस्तक में सुन्दर भराव और गठाव हो तो व्यक्ति का स्वावलम्बन और स्वाभिमान प्रकट होता है । इस प्रकार का व्यक्ति अन्तिम जीवन में अधिक धनी बनता है और गार्हस्थिक सुख का आनन्द लेता है। यदि सिर का पिछला भाग चिकना और शिखा भाग के सम स्तर पर हो, बीच में गहराई न हो तो ऐसा व्यक्ति विषयी, गार्हस्थिक कार्यों में अनुरक्त एवं निर्धन होकर वृद्धावस्था में कष्ट प्राप्त करता है। गर्दन सीधी, गठी, दृढ़ और भरी होने से व्यक्ति विचारशील,