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भद्रबाहुसंहिता
देता है । उदर में तिल होने से व्यक्ति दीर्घसूत्री और स्वार्थी होता है। नासिका के वामपार्श्व में तिल रहने से पुरुष धनहीन, मद्यपायी और मूर्ख होता है। बायीं ओर के कपोल पर तिल हो तो अटूट दाम्पत्य प्रेम होता है और सौभाग्य की वृद्धि होती है। कान में तिल होने से भाग्य और यश की वृद्धि होती है। नितम्ब में तिल होने से अधिक सन्तान प्राप्त होती है, किन्तु सभी जीवित नहीं रहतीं। दाहिनी जाँघ का तिल धनी होने का सूचक है । बायीं जांघ का तिल दरिद्र और रोगी होने की सूचना देता है। दाहिने पैर में तिल होने से व्यक्ति ज्ञानी होता है, आधी अवस्था के पश्चात् संन्यासी का जीवन व्यतीत करता है। दाहिनी बाहु में तिल होने से दृढ़ शरीर, धैर्यशाली एवं बायीं बाहु में तिल होने से व्यक्ति कठोर प्रकृति, क्रोधी और विश्वासघातक होता है । इस प्रकार के तिल वाले व्यक्ति प्रायः डाकू या हत्यारे होते हैं। ___ यदि नारियों के बायें कान, बायें कपोल, बायें कण्ठ अथवा बायें हाथ में तिल हो तो वे प्रथम प्रसव में पुत्र प्रसव करती हैं। दाहिनी भौंह में तिल रहने से गुणवान् पति-लाभ करती हैं। बायीं छाती के स्तन के नीचे तिल रहने से बुद्धिमती, प्रेमवती और सुखप्रसविनी होती हैं । हृदय में तिल होने से नारी सौभाग्यवती होती है। दक्षिण स्तन में लोहितवर्ण का तिल हो तो चार कन्याएं और तीन पुत्र उत्पन्न होते हैं। बायें स्तन में तिल या लाल कोई चिह्न हो तो वह स्त्री एक पुत्र प्रसव कर विधवा हो जाती है । बगल में सुदीर्घ तिल होने से नारी पतिप्रिया और पौत्रवती होती है । नख में श्वेत बिन्दु हो, तो उसके स्वेच्छाचारिणी तथा कुलटा होने की संभावना है। जिस स्त्री की नाक की नोक पर तिल या मस्सा हो; दन्त और जिह्वा काली हो तो वह स्त्री विवाह के दशवें दिन विधवा होती है। दक्षिण घुटने पर तिल होने से मनोहर पति-लाभ होता है। दाहिनी बाहु में हो तो पति को सौभाग्यदायिनी तथा पीठ में तिल होने से सुलक्षण और पतिपरायण होती है । बायीं भुजा में तिल या मस्सा होने से स्त्री मुखरा, कलहकारिणी और कटुभाषिणी होती है । बायें कंधे पर तिल रहने से चंचला, व्यभिचारिणी और असत्यभाषिणी होती है। नाभि के बायें भाग में तिल रहने से चंचला और नाभि के दाहिने भाग में तिल होने से सुलक्षणा होती है। मस्सों और चट्टोंलहसुनों का शुभाशुभ फल भी तिलों के समान ही समझना चाहिए। निमित्त शास्त्र में व्यंजनों का विचार विस्तारपूर्वक किया है। ___ अंगनिमित्तज्ञान-हाथ, पांव, ललाट, मस्तक और वक्षःस्थल आदि शरीर के अंगों को देखकर शुभाशुभ फल का निरूपण करना अंगनिमित्त है। नासिका, नेत्र, दन्त, ललाट, मस्तक और वक्षःस्थल ये छ: अवयव उन्नत होने से मनुष्य सुलक्षण युक्त होता है । करतल, पदतल, नयनप्रान्त, नख, तालु, अधर और जिह्वा ये सात अंग लाल हों तो शुभप्रद है। जिसकी कमर विशाल हो, वह बहुत पुत्रवान्