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भद्रबाहुसंहिता सिद्धान्त द्वारा ग्रहों की गति, स्थिति, वक्री-मार्गी, मध्यफल, मन्दफल, सूक्ष्मफल, कुज्या, त्रिज्या, वाण, चाप, व्यास, परिधि फल एवं केन्द्रफल आदि का प्रतिपादन किया गया है। आकाशमण्डल में विकीणित तारिकाओं का ग्रहों के साथ कब कैसा सम्बन्ध होता है, इसका ज्ञान भी गणित प्रक्रिया से ही संभव है। जैनाचार्यों ने भौगोलिक ग्रन्थों में 'ज्योतिर्लोकाधिकार' नामक एक पृथक् अधिकार देकर ज्योतिषी देवों के रूप, रंग, आकृति, भ्रमणमार्ग आदि का विवेचन किया है। यों तो पाटीगणित, बीजगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, गोलीय रेखागणित, चापीय एवं वक्रीय त्रिकोणमिति, प्रतिभागणित, शृगोन्नति गणित, पंचांगनिर्माण गणित, जन्मपत्रनिर्माण गणित, ग्रहयुति, उदयास्त सम्बन्धी गणित का निरूपण इस विषय के अन्तर्गत किया गया है।
फलित सिद्धान्त में तिथि, नक्षत्र, योग, करण, वार, ग्रहस्वरूप, ग्रहयोग जातक के जन्मकालीन ग्रहों का फल, मुहूर्त, समयशुद्धि, दिक्शुद्धि, देशशुद्धि आदि विषयों का परिज्ञान करने के लिए फुटकर चर्चाओं के अतिरिक्त वर्षप्रबोध, ग्रहभाव प्रकाश, बेड़ाजातक, प्रश्नशतक, प्रश्न चतुर्विशतिका, लग्नविचार, ज्योतिष रत्नाकर प्रभृति ग्रन्थों की रचना जैनाचार्यों ने की है। फलित विषय के विस्तार में अष्टांगनिमित्तज्ञान भी शामिल है और प्रधानतः यही निमित्त ज्ञान संहिता विषय के अन्तर्गत आता है। जैन दृष्टि में संहिता ग्रन्थों में अष्टांग निमित्त के साथ आयुर्वेद और क्रियाकाण्ड को भी स्थान दिया है। ऋषिपुत्र, माघनन्दी, अकलंक, भट्टवोसरि आदि के नाम संहिता-ग्रन्थों के प्रणेता के रूप से प्रसिद्ध हैं । प्रश्नशास्त्र और सामुद्रिक शास्त्र का समावेश भी संहिता शास्त्र में किया है।
अष्टांग निमित्त
जिन लक्षणों को देखकर भूत और भविष्यत् में घटित हुई और होने वाली घटनाओं का निरूपण किया जाता है, उन्हें निमित्त कहते हैं। न्यायशास्त्र में दो प्रकार के निमित्त माने गये हैं--कारक और सूचक । कारक निमित्त वे कहलाते हैं, जो किसी वस्तु को सम्पन्न करने में सहायक होते हैं, जैसे घड़े के लिए कुम्हार निमित्त है और पट के लिए जुलाहा । जुलाहे और कुम्हार की सहायता के बिना घट और पट रूप कार्यों का बनना संभव नहीं । दूसरे प्रकार के निमित्त सूचक हैं, इनसे किसी वस्तु या कार्य की सूचना मिलती है, जैसे सिगनल के झुक जाने से रेलगाड़ी के आने की सूचना मिलती है। ज्योतिष शास्त्र में सूचक निमित्तों की विशेषताओं पर विचार किया गया है तथा संहिता ग्रन्यों का प्रधान प्रतिपाद्य विषय सूचक निमित्त ही हैं । संहिता शास्त्र मानता है कि प्रत्येक घटना के घटित होने के पहले प्रकृति में विकार उत्पन्न होता है; इन प्राकृतिक विकारों की पहचान से व्यक्ति भावी शुभ-अशुभ घटनाओं को सरलतापूर्वक जान सकता है।