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भद्रबाहुसंहिता
जैन ज्योतिष का विकास
जैनागम की दृष्टि से ज्योतिष शास्त्र का विकास विद्यानुवादांग और परिकर्मों से हुआ है। समस्त गणित-सिद्धान्त ज्योतिष परिकर्मों में अंकित है और अष्टांग निमित्त का विवेचन विद्यानुवादांग में किया गया है । षट्खण्डागम धवला टीका में रौद्र, श्वेत, मैत्र, सारभट, दैत्य, वैरोचन, वैश्वदेव, अभिजित्, रोहण, बल, विजय, नैऋत्य, वरुण, अर्यमन और भाग्य ये पन्द्रह मुहूर्त आए हैं। मुहर्तों की नामावली वीरसेन स्वामी की अपनी नहीं है, किन्तु पूर्व परम्परा से श्लोकों को उन्होंने उद्धृत किया है। अतः मुहूर्त चर्चा पर्याप्त प्राचीन है। प्रश्नव्याकरण में नक्षत्रों के फलों का विशेष ढंग से निरूपण करने के लिए इनका कुल, उपकुल और कुलोपकुलों में विभाजन कर वर्णन किया है। यह वर्णन-प्रणाली संहिता शास्त्र के विकास में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। बताया गया है कि'-"धनिष्ठा, उत्तराभाद्र पद, अश्विनी, कृत्तिका, मृगशिरा, पुष्य, मघा, उत्तरा फाल्गुनी, चित्रा, विशाखा, मूल एवं उत्तराषाढ़ा ये नक्षत्र कुलसंज्ञक; श्रवण, पूर्वाभाद्रपद, रेवती, भरणी, रोहिणी, पुनर्वसु, आश्लेषा, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, स्वाति, ज्येष्ठा एवं पूर्वाषाढ़ा ये नक्षत्र उपकुल-संज्ञक और अभिजित् शतभिषा, आर्द्रा एवं अनुराधा कुलोपकुल संज्ञक हैं।" यह कुलोपकुल का विभाजन पूर्णमासी को होने वाले नक्षत्रों के आधार पर किया गया है । अभिप्राय यह है कि श्रावण मास के धनिष्ठा, श्रवण और अभिजित्; भाद्रपद मास के उत्तराभाद्रपद, पूर्वाभाद्रपद और शतभिषा; अश्विन मास के अश्विनी और रेवती; कार्तिक मास के कृत्तिका और भरणी; अगहन या मार्गशीर्ष मास के मृगशिरा और रोहिणी; पौष माष के पुष्य, पुनर्वसु और आर्द्रा; माघ मास के मघा और आश्लेषा; फाल्गुनी माम के उत्तराफाल्गुनी और पूर्वाफास्गुनी; चैत्र मास के चित्रा और हस्त; वैशाख मास के विशाखा और स्वाति; ज्येष्ठ मास के ज्येष्ठा, मूल और अनुराधा एवं आषाढ़ मास के उत्तराषाढ़ा और पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र बताये गये हैं । प्रत्येक मास
1. देखें-धवला टीका, जिल्द 4, पृ० 318।
2. ता कहते कुला उवकुला कुलावकुला अहितेति वदेज्जा। तत्य खलु इमा बारस कुला बारस उपकुला चत्तारि कुलावकुला पण्णत्ता। बारसकुला तं जहा–धणिट्ठा कुलं, उत्तराभद्दवया कुलं, अस्सिणी कुलं, कत्तियाकुलं, मिगसिरकुलं, पुस्सोकुलं, महाकुलं, उत्तराफग्गुणीकुलं, चित्ताकुलं, विसाहाकुलं, मूलोकुलं, उत्तरासाणकुलं । बास उवकुला पण्णत्ता तं जहा सवणो उवकुलं, पुवमद्दवया उवकुलं, रेवती उवकुलं, भरणि उवकुलं, रोहिणी उवकुलं, पुणव्वसु उवकुलं, असलेसा उवकुलं, पुवफग्गुणी उवकुलं, हत्यो उवकुलं, साति उवकुलं, जेठा उपकुलं, पुवासाढा उवकुलं ।। चत्तारि कुलावकुलं पण्णत्ता तं जहा-अभिजिति कुलावसतभिसया कुलावकुलं, कुलं, अद्दाकुलावकुलं अणु राहा कुलावकुलं ।।-पु. का० 10, 5