Book Title: Bauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की जैनदृष्टि से समीक्षा
जा सकता है । उमास्वाति दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों में समान रूप से आदृत रहे हैं। कुन्दकुन्द, समन्तभद्र, सुमति, पात्रस्वामी, कुमारनन्दी, श्रीदत्त, अकलङ्क, विद्यानन्द, अनन्तवीर्य, वादिराज, माणिक्यनन्दी एवं प्रभाचन्द्र दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के प्रमुख आचार्य हैं तथा सिद्धसेन, मल्लवादी, जिनभद्र, सिंहसूरि, हरिभद्रसूरि, सिद्धर्षिगणि, अभयदेवसूरि, शान्तिसूरि, वादिदेवसूरि एवं हेमचन्द्र श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय के आचार्य हैं।
दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों के आचार्यों ने जैन-न्याय का कंधे से कंधा मिलाकर विकास किया। दोनों की प्रमाणमीमांसीय मान्यताओं में विशेष भेद नहीं होने के कारण दोनों ने अन्य मतावलम्बी दार्शनिकों का समान रीति से खण्डन किया। पांचवीं शती में श्वेताम्बर जैन दार्शनिक मल्लवादी ने दिङ्नाग न्याय का द्वादशारनयचक्र में खण्डन किया तथा उनके पूर्व इसी सम्प्रदाय के आचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने जैनन्याय की स्वतंत्र कृति न्यायावतार का निर्माण किया । हरिभद्रसूरि ने अपने अनेकान्त दृष्टि से सम्बद्ध अनेकान्तजयपताका एवं शास्त्रवार्तासमुच्चय जैसे ग्रंथों में अन्य दर्शनों का परीक्षण किया।
जैन-न्याय को व्यवस्थित स्वरूप दिगम्बर जैन दार्शनिक अकलङ्क ने दिया तथा विद्यानन्द अनन्तवीर्य, वादिराज एवं प्रभाचन्द्र ने अन्य दर्शनों का खण्डन कर जैन न्याय की पताका को ऊंचा उठाया। अकलङ्क के पूर्व जैन दार्शनिक सुमति एवं पात्रस्वामी ने भी जैन प्रमाणमीमांसा को व्यापक रूप से प्रस्तुत किया। सुमति ही एक ऐसे दिगम्बर जैन आचार्य हैं जिनके द्वारा श्वेताम्बर जैन दार्शनिक सिद्धसेन की कृति सन्मतितर्क पर टीका रचने का उल्लेख मिलता है । इसी प्रकार श्वेताम्बर आचार्यों में यशोविजय (१७ वीं सदी) एक ऐसे आचार्य है,जिन्होंने दिगम्बर ग्रंथ अष्टसहस्री पर तात्पर्यविवरण की रचना की है। अन्यथा विशेष मान्यता भेद नहीं होते हुए भी समस्त दिगम्बरएवं श्वेताम्बर आचार्यों ने अपने सम्प्रदाय के दार्शनिक ग्रंथों पर ही टीकाओं का निर्माण किया है। दोनों सम्प्रदाय अपने न्याय ग्रंथों का पृथक् रूपेण विकास करने में लगे हुए थे। यही कारण है कि दिगम्बर सम्प्रदाय में माणिक्यनन्दी ने जो कार्य परीक्षामुख की रचना करके सम्पन्न किया,श्वेताम्बर सम्प्रदाय में वही कार्य वादिदेवसूरि ने प्रमाणनयतत्वालोक का निर्माण करके किया। इसी प्रकार दिगम्बर प्रभाचन्द्र के प्रमेयकमलमार्तण्ड एवं न्यायकुमुदचन्द्र की समता श्वेताम्बर आचार्य वादिदेवसूरि के स्याद्वादरत्नाकर से की जा सकती है। ___ दिगम्बर एवं श्वेताम्बर सम्प्रदाय के आचार्यों ने पारस्परिक आदान-प्रदान भी किया है। श्वेताम्बर दार्शनिक अभयदेवसूरि (१० वीं सदी) के अनेक तर्कों को दिगम्बर दार्शनिक प्रभाचन्द्र (११वीं सदी) ने ज्यों का त्यों ले लिया है, तो श्वेताम्बर दार्शनिक वादिदेवसूरि (१२ वीं सदी) ने प्रभाचन्द्र के तर्कों को यथा रूप अपना लिया है । वादिदेवसूरि ने उन प्रसंगों में प्रभाचन्द्र से मतभेद प्रकट किया है जिनमें श्वेताम्बर-सम्प्रदाय दिगम्बर-सम्प्रदाय से मतभेद रखती है। दिगम्बर एवं
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