Book Title: Bauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 466
________________ विषयानुक्रमणिका अकिञ्चित्कर हेत्वाभास २८५ अप्रमाण ५० अक्ष १२९ अप्राप्यकारी १३९,१९६ अज्ञातार्थज्ञापकता ६९-७१,७४,७६,७९,८०, अभिलाप १५९ ८२-८८ अभिलापसंसर्गयोग्य ११३ अअसा १३२ अभ्यास १५८,१५९,१८८ अतीन्द्रियज्ञान १३४-१३७,२०१ अभ्रान्त-प्रान्त ७२, ७३,९३, १००, १११, अदोषोद्भावन निग्रहस्थान २८७ ११२,११६-१२०,१७७,१९३,१९५ अधिपतिप्रत्यय १२४,१४३ अर्थक्रिया १०३,१०६,११८, १६६,१६७ अध्यवसेय ७४,९५,९८,१००,१०१ अर्थक्रियास्थिति ७२,८९,९०,९३ अनधिगत (अपूर्व) ७९,८०,८२-८८,८९ अर्थप्रापकता ७२,७४,९१,९५,९६, अनन्तरफल ३६६ ९७,९८,९९-१०१,१०४,१५८ अनन्तरागम ३३ अर्थसारूप्य (अर्थाकारता) ७५, १०५,१५८, ३८१ अनिन्द्रिय प्रत्यक्ष १३४,१३९,१९७ अनियताकार प्रतिभास ११३ अर्थावग्रह १४१ अनुगामी ७७,१३५ अर्थित्व १५८,१५९,१८९ अनुपलब्धि हेतु २३५,२५३,२५४,२५९ ।। अवग्रह १४०,१४१,२०७ अनुमान ९,३२,३७,४८,२०८,२०९,२१०, अवधिज्ञान १३५ २११,२१२ अवयव २,५,११ ३२,५२,२१३ अनुमान-भेद २१२,२१३,२१४ अवाय १४२, २०७ अनुमानाभास २०८,२११ अविनाभाव २२०,२३०,२३२,के भेद २३२, अनुमेय २७७ २५८,२६१ अविसंवादी ज्ञान (अविसंवादकता) ७१-७५, अनेकान्तवाद ४१,४२,४४,६४,६५, ९९,१०५,१४९,१५५ ७६,७९,८०,८१,८९-१०५, ११६, ११८, १५०,१५८,१६२,२०९ अनेकान्तिक हेत्वाभास २८४,२८५ अन्तर्व्याप्ति २६९,२८२ अव्यपदेश्य १४५ अन्यथानुपपत्ति ५०,२२० असाधनाङ्गवचन निग्रहस्थान २८६,२८८ अपोह ३३८,के भेद ३३९.पर्युदास अपोह के । असिद्ध हेत्वाभास २८४ २ भेद ३३९,३४६,अपोह के अन्य भेद ३४८ आगम-प्रमाण ३३,४१,३३२ अपोहवाद ६१ आगमानुयायी १४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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