Book Title: Bauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 461
________________ ४३० बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की जैनदृष्टि से समीक्षा मुनिनथमल (सम्प्रति आचार्य महाप्रज्ञ) ३० मैत्रेय १० मोक्षाकरगुप्त १३, २९,७५,२३५, २३७, २७४,२८४,३११,३५३ यमारि २१,२३ यशोधरचरित ५६ यशोविजय ६१,६२,१४०,२०७ युक्तिदीपिका ५ युक्तिषष्टिका ८ युक्त्यनुशासन ४०,४१,५२ युक्त्यनुशासनालङ्कार ५२ योगसूत्र २९५ योगसेन २७ योगाचारभूमिशास्त्र १०,११ रत्नकरण्डटीका. ५८ रत्नकरण्ड श्रावकाचार ४० रत्लकीर्ति १३,२९,६६,३११, ३४०,३५१ रत्लकीर्तिनिबन्धावलि ३११,३४० रत्नप्रभाचार्य ६०,२३१,२६० रत्नाकरावतारिका ६०,२३१,२६० रविगुप्त २१,२३ राजप्रश्नीय सूत्र ३०,३१,१२९ रामायण ३३ राहुल सांकृत्यायन १०,१५, १९, २०,२२, २४,२५,२७ लक्षणकार २७ लघीयस्त्रय ४७,४८,४९,५१,५८, ५९,८०,८९,१३२,१३४,१४१,१४२,१४९, १९९,२१२,२१५,२२६,२३८,२४५,२५४, २६२,२९१,२९३,२९४,३१२,३१८,३१९, ३२३,३३३,३३४,३३५,३५७,३६०,३६१, ३६७,३६९,३७०,३९७ लघीयस्त्रयवृत्ति ६८,८०,८१,८९,९०,९४, १३४,१३८,२००,२३८,२४५,२५५,२६३, २९३,२९४,३११,३१२,३१८,३३४,३३५, ३६०,३६७,३६८,३६९,३७०,३९६,३९७ लघुअनन्तवीर्य ५५,२४० लामा तारानाथ २४ वरदराज ३२० वर्धमानसूरि ५६ वसुबन्धु ७,१०,११,१४,१५, १६,१७,१९,२६,४३,४५,६४,१०९,११० वसुरात ४३ वाक्यपदीय ११६,३३८,४०३ वाचस्पतिमिश्र १४,२०,२९,२०४, २६१,२९६,३०९,३२१,३४०,३५१,३५४ वाचस्पति मिश्र द्वारा बौद्धदर्शन का विवेचन१४ वात्स्यायन १,३,५,१५,२१०, २१६,२१७,२७५,२७६,२९६,३२० वादकौशल ११ वादन्याय (जैन) २८,४६,२८७ वादन्याय (बौद्ध) २०,२२,२३,२६,२७,४६, २५९,२८६,२८७,२८८ वादमहार्णव ५७ वादमार्ग ११ वादरायण ४ वादविधि ११,१०९,११०,१२१ वादिदेवसूरि(देवसूरि,वादिदेव) २९,४७,५२, ५४,५७,५९,६०,६२,६३,६६,६७,७६,८०, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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