Book Title: Bauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
View full book text
________________
अनुमान-प्रमाण
२२७
विद्यानन्द के अनुसार त्रिलक्षण हेतु अनुपपन्न है,क्योंकि सपक्षसत्त्व,पक्षधर्मत्व एवं विपक्ष में असत्त्व ये तीनों लक्षण हेत्वाभास में भी पाये जाते हैं,यथा वह श्यामवर्ण है,उसका पुत्र होने से उसके अन्यपुत्रों के समान' इस वाक्य में पक्षधर्मत्वादि तीनों रूपों का सद्भाव है तथापि यह सद्हेतु नहीं हेत्वाभास है।१३३ उसके अन्य पुत्र सपक्ष, विवादाध्यासित पुत्र पक्ष तथा अश्याम अन्य पुत्र 'तत्पुत्रत्व' हेतु का विपक्ष है । यह हेतु पक्ष एवं सपक्ष में रहता है, किन्तु विपक्ष में नहीं रहता । इस प्रकार त्रिरूप सम्पन्न होकर भी यह अविनाभाव के अभाव में हेत्वाभास है।
'उदेष्यति शकटं कृत्तिकोदयात्' अर्थात् 'एक मुहूर्त पश्चात् शकट नक्षत्र का उदय होगा,क्योंकि अभी कृत्तिका नक्षत्र का उदय हुआ है' इस वाक्य में पक्षधर्मत्व का अभाव होने पर भी कृत्तिकोदय हेतु शकटोदय साध्य का गमक सिद्ध होता है । १३४ यदि आकाश अथवा काल को पक्ष तथा उदय होने वाले शकट को साध्य मानकर कृत्तिकोदय हेतु में पक्षधर्मत्व अंगीकार किया जाता है१३५ तो इस प्रकार तो पृथ्वी को पक्ष मानकर महोदधि अग्नि रूप साध्य को सिद्ध करने के लिए महानस के धूम को हेतु बनाया जा सकता है,क्योंकि वह धूम हेतु भी पृथ्वी रूप पक्ष में विद्यमान है। बौद्ध - शकटोदय एवं कृत्तिकोदय में कारणकार्य भाव के कारण अविनाभाविता है,पूर्वचर होने के कारण नहीं ।१३६ शकटोदय, कृत्तिकोदय का भावी कारण है तथा कृत्तिकोदय उसका कार्य, अतः कृत्तिकोदय कार्य से शकटोदय कारण का अनुमान होता है । इसी प्रकार अतीत कारण भरण्युदय से भी कृत्तिकोदय कार्य का अनुमान शक्य है। अतीत एवं अनागत कारण का कार्य से अन्वयव्यतिरेक सम्बन्ध हो सकता है। विद्यानन्द-भिन्न कालवर्ती अतीत या अनागत पदार्थ,कार्य का कारण नहीं हो सकता, क्योंकि वैसी प्रतीति ही नहीं होती है तथा किसी विद्यमान अर्थ का ही कार्योत्पादन में व्यापार हो सकता है,अविद्यमान या अनागत का नहीं। अतएव कृत्तिकोदय और शकटोदय में कार्यकारणभाव सिद्ध नहीं होता है। यदि इनमें कार्यकारणभाव मान लिया जाय तो भी कृत्तिकोदय हेतु में पक्षधर्मत्व नहीं है एवं वह हेतु पक्षधर्मता के बिना भी साध्य का साधक होता है । अतः ‘पक्षधर्मत्व' हेतु का लक्षण नहीं है।
इसी प्रकार सपक्ष में ही हेतु का होना निश्चित हो,यह लक्षण भी घटित नहीं होता है । सपक्षसत्त्व के अभाव में भी समस्त पदार्थ अनित्य हैं,सत्त्व होने से' वाक्य में सत्त्वहेतु बौद्धों के द्वारा भी सम्यक् माना गया है । विपक्ष में हेतु का न होना ही निश्चित हो' यह लक्षण साध्याविनाभाव रूप ही है, अतः निश्चित रूपेण साध्याविनाभाव को ही हेतु का लक्षण मानना चाहिए अन्य लक्षणों को मानने का कोई
१३३. “स श्यामः तत्पुत्रत्वात् इतरतत्पुत्रवत्" इत्यत्र साधनाभासेऽपि तद्भावसिद्धेः ।-प्रमाणपरीक्षा, पृ.४५ १३४. उदेष्यति शकट कत्तिकोदयादित्यस्य पक्षधर्मत्वाऽभावेऽपि प्रयोजकत्वव्यवस्थितेः ।-प्रमाणपरीक्षा, प.४६ १३५.धर्मकीर्ति के टीकाकार कर्णकगोमि ने कृत्तिकोदय हेतु में काल या आकाश को पक्ष बनाकर पक्षधर्मत्व घटित किया
है।- अकलङ्कग्रन्थत्रय, प्रस्तावना, पृ.६२ १३६. भविष्यच्छकटकृत्तिकोदययोः कार्यकारणभावं साधयति ।-प्रमाणपरीक्षा, पृ.४६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org