Book Title: Bauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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प्रत्यक्ष-प्रमाण
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कराने के लिए अन्य अननुभूत विशदत्व आदि धर्म वाले ज्ञान की कल्पना की जाती है तो अनवस्था दोष आता है।२९२ बौद्ध- कोई ज्ञान सविकल्पक होता है तथा कोई निर्विकल्पक । इनमें विकल्प की उत्पत्ति अर्थसामर्थ्य से नहीं होती है इसलिए विकल्प में स्पष्टता आदि धर्म नहीं पाये जाते हैं एवं अविकल्प की उत्पत्ति भी यदि अर्थसामर्थ्य के बिना मान ली जाय तो कहीं भी स्पष्टता आदि धर्म नहीं पाये जायेंगे । अतः अविकल्प में उन्हें स्वीकार करना चाहिए । वस्तुतः अर्थसामर्थ्य से उत्पन्न होने की वैशद्य से व्याप्ति है। अविकल्प ज्ञान अर्थसामर्थ्य से उत्पन्न होता है,अतः वह विशद है। अभयदेवसूरि- अर्थसामर्थ्य से उत्पन्न होने पर भी दूर स्थित पादप आदि का ज्ञान विशद नहीं होता है एवं योगिप्रत्यक्ष ज्ञान अर्थ सामर्थ्य से अनुत्पन्न होकर भी स्पष्ट होता है अतः विशदता की व्याप्ति अर्थसामोत्पन्न ज्ञान से नहीं कही जा सकती।
योगिप्रत्यक्ष ज्ञान अर्थ के सामर्थ्य से उत्पन्न नहीं होता है ,क्योंकि योगी पुरुष अतीत एवं अनागत अर्थ के अभाव में भी उनका प्रत्यक्ष कर लेता है। यदि अन्य स्वभाव से योगिप्रत्यक्ष में अतीतादि अर्थों का ज्ञान होता है तो उस ज्ञान को सावयवग्राही मानना होगा,फलतः वह सविकल्पक हो जायेगा। अतः योगिप्रत्यक्ष ज्ञान को अर्थ सामर्थ्य से उत्पन्न नहीं मानना चाहिए। __ जैन दार्शनिकों के मत में कोई ज्ञान अर्थसामर्थ्य से उत्पन्न नहीं होता , इसलिए विकल्प ज्ञान अर्थसामर्थ्य से अनुत्पन्न होकर भी यदि विशद होता है तो इसमें क्या विरोध है ? २९३ बौद्ध - विकल्प का विशदता से ही विरोध है । विकल्प से अनुबद्ध ज्ञान में स्पष्ट अर्थ का प्रतिभास नहीं होता यथा स्वप्न में स्मार्त ज्ञान का स्मरण होता है, किन्तु स्पष्ट अर्थ का ज्ञान नहीं होता है । २९४ अभयदेवसूरि- स्वप्नावस्था में पुरोवर्ती हस्ती आदि का प्रकाशक एक ज्ञान अनुभव में आता है तथा दूसरा स्मरण ज्ञान होता है । उनमें पूर्वोल्लेख रूप से उत्पन्न स्वप्न ज्ञान को यदि अविशद माना जाता है तो इससे समस्त विकल्प ज्ञानों में विशदता का अभाव नहीं होता। कुछ विकल्प ज्ञान पुरोवर्ती स्तम्भ आदि का स्पष्ट ज्ञान करते हैं। इन ज्ञानों की स्वसंवेदन- प्रत्यक्ष से भी प्रतीति होती है। पुरोवर्ती स्तम्भादि के स्पष्ट ज्ञान को अविकल्पक नहीं कहा जा सकता ,वह तो सविकल्पक ही है। स्थिर एवं स्थूल पुरोवर्ती हस्ती आदि के प्रकाशक स्वप्नावस्था के ज्ञान को यदि निर्विकल्पक माना जाता है तो सावयव वस्तु के अध्यवसायी अनुमान ज्ञान को भी निर्विकल्पक मानना होगा,फलतः विकल्प की बात ही समाप्त हो जायेगी और आपका यह कथन भी निरस्त हो जायेगा कि पहले निरंश वस्तु का
२९२. द्रष्टव्य, परिशिष्ट - ख २९३. द्रष्टव्य, परिशिष्ट-ख २९४. विकल्पस्य वैशद्यमेव विरोधः । तदुक्तम्
न विकल्पानबद्धस्यस्पष्टार्थप्रतिभासिता। स्वऽपि स्मर्यते स्मातनच तत् तादगर्भवत् ।।-प्रमाणवार्तिक,२.२८३
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