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जे दंससु भट्ठा गाणे भट्ठा चरितभट्ठा य ।
वे भट्ठ वि भट्ठा से पि जणं विणासंति ॥ ८॥
जो व्यक्ति सम्यग्दर्शन में, सम्यग्ज्ञान में और सम्यक् चारित्र में भ्रष्ट हैं वे महाभ्रष्ट हैं। संगति से अन्य व्यक्ति भी भ्रष्ट हो जाते हैं।
जो कोवि धम्मसीलो संजमतवणियमजोगगुणधारी । तस् य दोस कहंता भग्गा भग्गत्तणं दिति ॥६॥ ऐसे भ्रष्ट व्यक्ति नियम, संयम, योग तथा गुणों से सम्पन्न धर्मशील व्यक्तियों पर दोषारोपण करते रहते हैं। ख़ुद भ्रष्ट हैं पर भ्रष्टता का आरोप दूसरों पर लगाते हैं।
जह मूलम्मि विणट्ठे दुमस्स परिवार णत्थि परवड्ढी । तह जिणदंसणभट्ठा मूलविणट्ठा ण सिज्झति ॥ १० ॥
जड़ नष्ट हो जाने पर जैसे पेड़ का परिवार यानी शाखाएं, पत्ते नहीं बढ़ते वैसे ही जिनदर्शन अर्थात् सम्यग्दर्शन से भ्रष्ट हुए व्यक्ति को मोक्ष नहीं मिलता ।
जह मूलाओ खंधो साहापरिवार बहुगुणो होदि । तह जिणदंसण मूलो णिद्दिट्ठो मोक्खमग्गस्स ॥ ११ ॥
पेड़ की जड़ हो तो स्कन्ध, शाखाओं आदि के रूप में उसका परिवार खूब फलता फूलता है । मोक्षमार्ग के सन्दर्भ में सम्यग्दर्शन की भूमिका भी मूल (जड़) के रूप में
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ही है।
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