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उत्तममज्झिमगेहे दारिद्द ईसरे णिरावेक्खा |
सव्वत्थ गिहिदपिंडा पव्वज्जा एरिसा भणिया ॥ १५६ ॥
आहार देने वाला चाहे ग़रीब हो या अमीर, उसका घर चाहे बड़ा हो या मध्यम, प्रव्रज्या (दीक्षा) में सभी के प्रति निरपेक्ष भाव रहता है और सब जगह आहार लिया जा सकता है।
णिग्गंथा णिस्संगा णिमाणासा अराय णिद्दोसा । णिम्ममणिरहंकारापव्वज्जा एरिसा भणिया ॥ १५७ ॥
प्रव्रज्या परिग्रह, स्त्रीसंग, मानकषाय, अपेक्षाओं, द्वेष, ममत्व, अहंकार आदि से रहित होती है।
णिण्णेहा णिल्लोहा णिम्मोहा णिव्वियार णिक्कलुसा । णिभय णिरासभावा पव्वज्जा एरिसा भणिया ॥ १५८ ॥ प्रव्रज्या में किसी द्रव्य विशेष के प्रति लगाव, लोभ, मोह, विकार, कलुष, भय और प्राप्ति की आशा नहीं होती ।
जहजायरूवसरिसा अवलंबियभुय णिराउहा संता ।
परकियणिलयणिवासा पव्वज्जा एरिसा भणिया ॥ १५६ ॥
बच्चा जिस नग्न रूप में जन्म लेता है वही रूप / वेश प्रव्रज्या में होता है, कायोत्सर्ग मुद्रा धारण करने से भुजाएं लम्बायमान रहती हैं, कोई हथियार पास में नहीं होता, शान्त भंगिमा होती है और दूसरों की बनाई हुई वस्तिका आदि में निवास करना होता है।
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