Book Title: Atthpahud
Author(s): Kundkundacharya, Jaykumar Jalaj, Manish Modi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalay

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Page 124
________________ जीवदया दम सच्चं अचोरियं बंभचेरसंतोसे । सम्मइंसण णाणं तओ य सीलस्स परिवारो॥४८२॥ जीव दया, इन्द्रियनिग्रह, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, सन्तोष, सम्यग्दर्शन, ज्ञान और तप-यह शील का परिवार है। . सीलं तवो विसुद्धं दंसणसुद्धी य णाणसुद्धी य । . सीलं विसयाण अरी सीलं मोक्खस्स सोवाणं॥४८३॥ शील ही तप की निर्मलता है, शील ही दर्शन की शुद्धता है, शील ही ज्ञान की विशुद्धता है, शील ही इन्द्रिय विषयों का शत्रु है और शील ही मोक्ष की सीढ़ी है। जह विसयलुद्ध विसदो तह थावरजंगमाण घोराणं । सव्वेसि पि विणासदि विसयविसं दारूणं होदि॥४८४॥ जैसे विषयलुब्ध जीव को विषय रूपी विष नष्ट करता है वैसे ही तमाम बड़े-बड़े स्थावर जंगम अस्तित्वों को भी विष ही नष्ट करता है। लेकिन विषय रूपी विष सभी विषों में सबसे दारुण है। वारि एक्कम्मि य जम्मे मरिज विसवेयणाहदो जीवो। विसयविसपरिहया णं भमंति संसारकंतारे॥४८५॥ विष की वेदना से आहत जीव एक जन्म में एक ही बार मरता है। लेकिन विषयविष से मृत जीव को तो संसार रूपी वन में सदैव परिभ्रमण करना पड़ता है। बार बार जन्म लेना और मरना पड़ता है। 123

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