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दस प्रकार के अब्रह्म : १. स्त्री सम्बन्धी विषयों की अभिलाषा, २. वत्थिमोक्खो अर्थात् इन्द्रिय में विकार होना, ३. पौष्टिक आहार, ४. स्त्री स्पर्श अथवा उसकी शैया आदि का सम्पर्क, ५. स्त्री के सुन्दर शरीर का अवलोकन, ६. स्त्री सत्कार, ७. स्त्री सम्मान, ८. अतीत के भोगों का स्मरण, ह. अनागत अभिलाष (भविष्य की इच्छाएं), १०. इष्ट विषय सेवन (मनोवांछित सौध, उद्यान आदि का उपयोग करना)।
नौ पदार्थ : जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आम्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और
मोक्ष।
नौ प्रकार के ब्रह्मचर्य : जो मुनि स्त्री संग का त्याग करता है उसी के मन, वचन, काय और कृत, कारित, अनुमोदन के भेद से नौ प्रकार का ब्रह्मचर्य।
नौ नोकषाय : हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसक वेद।
पाँच अस्तिकाय : काल को छोड़कर शेष पाँच द्रव्य। ये पाँच ही अधिक प्रमाण के होने के कारण कायवान हैं।
पाँच महाव्रत : अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य। पाँच महाव्रतों की पच्चीस भावनाएं :
अहिंसा महाव्रत की पाँच भावनाएं : वचनगुप्ति, मनोगुप्ति, ईर्यासमिति, आदान निक्षेपण समिति और अवलोकित भोजनपान (देख शोध कर भोजनपान ग्रहण करना।
सत्य महाव्रत की पाँचभावनाएं: क्रोध प्रत्याख्यान, लोभ-प्रत्याख्यान, भीरुत्व प्रत्याख्यान, हास्य प्रत्याख्यान और अनुवीची भाषण।
अस्तेय महाव्रत की पाँच भावनाएं : वस्तु को उसके स्वामी की अनुज्ञा के बिना ग्रहण न करना, अनुज्ञा से गृहीत में भी आसक्ति नहीं रखना, प्रयोजन बताते हुए वस्तु माँगना, यह भावना न होना कि देने वाला दे रहा है तो सब की सब ले लूँ और ज्ञान चारित्र के लिए उपयोगी वस्तु ही ग्रहण करना।
अपरिग्रह महाव्रत की पाँच भावनाएं : शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध 131 ...