Book Title: Atthpahud
Author(s): Kundkundacharya, Jaykumar Jalaj, Manish Modi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalay

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Page 130
________________ कोई भूल कर सकता है । उसकी भूल को, उसकी दोषदृष्टि को दूर करना । गाव (गौरव) के तीन प्रकार : शब्द गारव (वर्ण के उच्चारण का गर्व), वृद्धि गारव ( शिष्य, पुस्तक, कमण्डल, पिच्छी आदि के बल पर अपने को ऊँचा समझना / ऊँचा प्रकट करना) और सात गारव (भोजन, पान आदि से उत्पन्न सुख में मस्त होकर मोह मद से ग्रस्त रहना ) चार गतियाँ : देव, मनुष्य, तिर्यंच और नरकगति । चार प्रकार का बाह्य मुनित्व : १. अचेलकत्व २. सिर और दाढ़ी, मूँछों के बालों का लोंच, ३. शरीर संस्कार का त्याग ४. मयूर पिच्छिका रखना । चार शरण : अरिहन्त, सिद्ध, साधु और केवली प्रणीत धर्म । चौदह गुणस्थान : मोह और मन, वचन, काय की प्रवृत्ति के कारण जीव के अन्तरंग परिणामों में प्रतिक्षण होने वाले उतार चढ़ाव को गुणस्थान कहा गया है। इनकी चौदह श्रेणियाँ मानी गई हैं मिथ्या दृष्टि, सासादन सम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्या दृष्टि यानी मिश्र, असंयत अथवा अविरत सम्यग्दृष्टि, संयतासंयत अथवा देशविरत, प्रमत्त संयत अथवा प्रमत्तविरत, अप्रमत्त क्षमता, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्म साम्पराय, उपशान्त कषाय, क्षीण कषाय, सयोग केवली, अयोग केवली । चौदह जीव समास : जिन गुणों / भावों में जीव रहते हैं उन्हें जीव समास कहते हैं । इनके कई प्रकार से कई भेद हैं। स्थावर जीवों के वादर-सूक्ष्म के आधार पर दस और त्रस जीवों के दो, तीन, चार, पाँच इन्द्रिय ये चार भेद / इस प्रकार कुल चौदह भेद | चौतीस अतिशय : जिनेन्द्र भगवान के चौंतीस अतिशयों में से दस तो उनके जन्म से ही होते हैं १. निस्वेदता, २. निर्मलता, ३. श्वेत रुधिरता, ४ . समचतुरस्र संस्थान, ५. वज्र वृषभ नाराच संहनन, ६. सुरूपता, ७. सुगन्धितता, ८. सुलक्षणता, ६. अतुलवीर्य, १०. हितमित वचन । ग्यारह अतिशय घाति कर्मों के क्षय होने पर होते हैं 129

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