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तुह मरणे दुक्खेण अण्णण्णाणं अणेयजणणीणं ।
रुण्णाण णयणणीर सायरसलिलादु अहिययरं ॥ १८६ ॥ तेरी मृत्यु पर अन्य अन्य अनेक माताओं के रोने से जो अश्रुजल बहा वह भी समुद्र के जल से अधिक है।
भवसागरे अणंते छिण्णुज्झिय केसणहरणालट्ठी ।
पुंजेइ जदि को विजए होदि य गिरिसमधिया रासी ॥१०॥ इस अनन्त संसार सागर में विभिन्न जन्मों में तेरे जितने नाल, नख, अस्थि और केश कटे, टूटे हैं यदि कोई देवता उनका ढेर लगाए तो वह पहाड़ से भी ज़्यादा बड़ा होगा।
जलथलसिहिपदणंबरगिरसरिदरितरुवणाइ सव्वत्थ।
वसिओ सि चिरं कालं तिहुवणमझे अणप्पवसो ॥ १९१॥ अनात्म के अधीन होने के कारण तुझे तीन लोक में जल, थल, अग्नि, पवन, आकाश, पर्वत, नदी, पार्वत्य गुफा, वृक्ष,वन आदि तमाम जगहों में चिर काल तक
रहना पड़ा।
गसियाई पुग्गलाई भुवणोदरवत्तियाइं सव्वाई।
पत्तोसि तो ण तित्तिं पुणरूवं ताई भुंजतो ॥ १९२ ॥ संसार के उदर में स्थित सभी पुद्गल स्कन्धों को तूने अपना भोज्य पदार्थ बनाया और बार बार उनका भोजन करते हुए भी तुझे तृप्ति नहीं मिली।
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