Book Title: Atthpahud
Author(s): Kundkundacharya, Jaykumar Jalaj, Manish Modi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalay

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Page 41
________________ संजमसंजुत्तस्स य सुझाणजोयस्स मोक्खमग्गस्स । लहदि लक्खं तम्हा णाणं च णायव्वं ॥ १२८ ॥ संयम से युक्त और श्रेष्ठ ध्यान के योग्य मोक्षमार्ग का लक्ष्य ज्ञान से ही प्राप्त होता है। इसलिए ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए । जह ण वि लहदि हु लक्खं रहिओ कंडस्स वेज्झयविहीणो । तण व लक्खदि लक्खं अण्णाणी मोक्खमग्गस्स ॥ १२६ ॥ जैसे धनुष बाण के बिना लक्ष्यवेध नहीं होता वैसे ही ज्ञान के बिना मोक्षमार्ग के लक्ष्य को देखा / पाया नहीं जा सकता । णाणं पुरिसस्स हवदि लहंदि सुपुरिसो वि विणयसंजुत्तो । णाणेण लहदि लक्खे लक्खतो मोक्खमग्गस्स ॥ १३० ॥ ज्ञात व्यक्ति को प्राप्त होता है लेकिन वह उस श्रेष्ठ व्यक्ति को प्राप्त होता है जो विनय से युक्त होता है। ज्ञान से ही मोक्षमार्ग का ध्यान करते रूपी) लक्ष्य की प्राप्ति होती है। हुए (आत्मस्वरूप महं जस्स थिरं सुदगुण वाणा सुअत्थि रयणत्तं । परमत्थबद्धलक्खो णवि चुक्कदि मोक्खमग्गस्स ॥ १३१ ॥ जिसके पास मति ज्ञान रूपी ऐसा स्थिर धनुष है जिसकी प्रत्यंचा श्रुत ज्ञान की और श्रेष्ठ बाण रत्नत्रय के हैं तथा जिसने परमार्थ को लक्ष्य बना रखा है उसका (उस मुनि का) (मोक्ष मार्ग / परमार्थ का) निशाना कभी चूकता नहीं । सो देवो जो अत्थं धम्मं कामं सुदेइ णाणं च । तो दइ जस्स अत्थि हु अत्थो धम्मो य पव्वज्जा ॥ १३२ ॥ देव वह है जो भरपूर अर्थ, धर्म, काम, ज्ञान (मोक्ष का कारण) आदि देता है । जिसके पास जो है वही तो वह देगा। जिसके पास धर्म एवं दीक्षा है वह धर्म और दीक्षा देगा । 40

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