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आहारो य सरीरो तह इंदियआणपाणभासा य ।
पज्जत्तिगुणसमिद्धो उत्तमदेवो हवइ अरहो ॥ १४२॥ आहार, शरीर, इन्द्रिय, मन, आन प्राण और भाषा इन छह पर्याप्ति गुणों से अरिहन्त देव समृद्ध होते हैं।
पंच वि इंदियपाणा मणवयकाएण तिण्णि बलपाणा ।
आणप्पाणप्पाणा आउगपाणेण होंति दहपाणा ॥ १४३ ॥ पाँच इन्द्रिय प्राण, मन-वचन और काय के तीन बल, एक श्वासोच्छ्वास तथा एक आयु इन दस प्राणों से अरिहन्त की स्थापना है।
मणुयभवे पंचिंदिय जीवट्ठाणेसु होइ चदुद्दसमे ।
एदे गुणगणजुत्तो गुणमारूढो हवइ अरहो ॥ १४४॥ अरिहन्त मनुष्यभव में पंचेन्द्रिय और जीवस्थानों में चौदहवें स्थान में होते हैं। वे गुण समूह से युक्त हैं और गुणस्थानों में उनका स्थान चौदहवाँ है। .
जरवाहिदुक्खरहियं आहारणिहारवज्जियं विमलं ।
सिंहाण खेल सेओ णत्थि दुगंछा य दोसो य ॥ १४५ ॥ अरिहन्त की देह वृद्धावस्था, रोग, दुःख, आहार, नीहार, श्लेष्म, थूक, पसीना और दुर्गन्ध जैसे दोषों से रहित और निर्मल होती है।
दसपाणा पज्जत्ती अट्ठसहस्सा य लक्खणा भणिया ।
गोखीरसंखधवलं मंसं रुहिरं च सव्वंगे ॥ १४६ ॥ अरिहन्त के दस प्राण, पूर्ण पर्याप्ति और एक हजार आठ लक्षण होते हैं। उनकी देह में दूध तथा शंख के समान धवल मांस और रक्त होता है।