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सपरा जंगमदेहा दंसणणाणेण सुद्धचरणाणं । णिग्गंथवीयराया जिणमग्गे एरिसा पडिमा ॥ ११८ ॥
दर्शन और ज्ञान के कारण जिसका चारित्र निर्मल है, जिसके लिए आत्मा स्व और देह पर है तथा जो निर्ग्रन्थ वीतराग है वह जिनशासन के अनुसार प्रतिमा है ।
जं चरदि सुद्धचरणं जाणइ पिच्छेइ सुद्धसम्मत्तं । साहो वंदणीयाणिग्गंथा संजदा पडिमा ॥ ११६ ॥
जिसका आचरण अत्यन्त शुद्ध हो और शुद्ध सम्यक्त्व को जानने, देखने में समर्थ हो वह परिग्रहों से मुक्त और संयमी मुनि प्रतिमा है । वह वन्दनीय है ।
दंसणअणंतणाणं अणंतवीरिय अनंतसुक्खा य । सासयसुक्ख अदेहा मुक्का कम्मट्ठबंधेहिं ॥ १२० ॥ णिरूवममचलमखोहा णिम्मिविया जंगमेण रूवेण ।
सिद्ध ट्ठाणम्मि ठिया वोसर पडिमा धुवा सिद्धा ॥ १२१ ॥ जो अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्त वीर्य और अनन्त सुख से युक्त है, शाश्वत सुख का धनी है, देहरहित है, आठ प्रकार के कर्मों के बन्धन से परे है, अनुपम है, अचल और क्षोभरहित है, जंगम रूप से निर्मित है और सिद्ध स्थान में कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित है वह ध्रुव सिद्ध प्रतिमा (सिद्ध भगवान्) है।
दंसेइ मोक्खमग्गं सम्मत्तं संजमं सुधम्मं च ।
णिग्गंथं णाणमयं जिणमग्गे दंसणं भणियं ॥ १२२॥
सम्यग्दर्शन, संयम, सुधर्म, निर्ग्रन्थता (परिग्रह राहित्य) और ज्ञान से सम्पन्न मोक्षमार्ग को दिखाने वाला जनमत में दर्शन कहलाता है।
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