________________
कोहभयहासलोहा मोहा विवरीयभावणा चेव ।
विदियस्स भावणाएं ए पंचेव य तहा होंति ॥ ९६ ॥ सत्य महाव्रत की पाँच भावनाएं हैं-क्रोध, भय, हास्य, लोभ एवं मोह से उलटी भावनाएं अर्थात् अक्रोध, अभय, अहास्य, अलोभ और अमोह।
सुण्णायारणिवासो विमोचियावास जं परोधं च ।
एसणसुद्धिसउत्तं साहम्मीसंविसंवादो ॥ १७ ॥ अचौर्य महाव्रत की पाँच भावनाएं हैं- शून्य आगार (गुफा, तरुकोटर आदि) में निवास, त्याग दिए गए मकान, गांव आदि में रहना, दूसरों के लिए कोई रुकावट न बनना, एषणा शुद्धि (शुद्ध आहार लेना) और साधर्मी के साथ विसंवाद नहीं करना।
महिलालोयणपुव्वरइसरणसंसत्तवसहिविकहाहिं ।
पुट्टियरसेहिं विरओ भावण पंचावि तुरियम्मि ॥ १८ ॥ ब्रह्मचर्य महाव्रत की पाँच भावनाएं हैं-महिलाओं को रागपूर्वक देखने, पूर्व भोगों को याद करने, स्त्रियों के समीपतर वसतिका में ठहरने, स्त्रीराग की कथा करने और पौष्टिक रसों का सेवन करने से विरत होना अर्थात् इन पाँचों से विरत रहना।
अपरिग्गह समणुण्णेसु सद्दपरिसरसरूवगंधेसु ।
रायद्दोसाईणं परिहारो भावणा होति ॥ १६ ॥ अपरिग्रह महाव्रत की भी पाँच भावनाएं हैं- स्पर्श, रस, रूप, गन्ध और शब्द के कारण सुन्दर-असुन्दर में कोई राग-द्वेष न रखना।
32
.