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पंचेंदियसंवरणं पंच वया पंचविंसकिरियासु। .
पंच समिदि तय गुत्ती संजमचरणं णिरायारं ॥६१ ॥ अनागार (मुनि) के संयम आचरण के अंग हैं-पंचेन्द्रियों का संवर (संकोचन), पच्चीस क्रियाओं के सद्भावपूर्वक पाँच व्रत, पाँच समितियाँ और तीन गुप्तियाँ।
अमणुण्णे य मणुण्णे सजीवदव्वे अजीवदव्वे य ।
ण करेदि रायदोसे पंचेंदियसंवरो भणिओ ॥१२॥ असुन्दर और सुन्दर तथा सजीव और अजीव किसी भी द्रव्य के प्रति राग द्वेष न रखना पंचेन्द्रिय संवर कहलाता है।
हिंसाविरइ अहिंसा असच्चविरइ अदत्तविरई य ।
तुरियं अबंभविरई पंचम संगम्मि विरइ य ॥६३ ॥ हिंसा से विरति, यानी अहिंसा, असत्य से विरति, यानी सत्य, अदत्त से विरति यानी अचौर्य, अब्रह्मचर्य से विरति और परिग्रह से विरति ये पाँच महाव्रत हैं।
साहंति जं महल्ला आयरियं जं महल्लपुव्वेहिं ।
जंच महल्लाणि तदो महव्वया इत्तहे याइं ॥ १४ ॥ इन्हें महाव्रत कहने का कारण यह है कि अतीत में महापुरुषों ने इनका आचरण किया, वर्तमान में भी ये महापुरुषों के आचरण में हैं और अपने आप में भी ये महान हैं।
वयगुत्ती मणगुत्ती इरियासमिदी सुदाणणिक्खेवो ।
अवलोयभोयणाए अहिंसाए भावणा होंति ॥ १५ ॥ अहिंसा महाव्रत की पाँच भावनाएं हैं-वचन गुप्ति, मनोगुप्ति, ईर्या समिति, कमण्डलु आदि के ग्रहण के रूप में आदान निक्षेपण समिति और देखकर विधिपूर्वक आहार ग्रहण करना यानी एषणा समिति।