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इरिया भासा एसण जा सा आदाण चेव णिक्खेवो ।
संजमसोहिणिमित्तं खंति जिणा पंच समिदीओ ॥१०० ॥ संयम आचरण की शुद्धि के लिए जिनेन्द्र भगवान् ने पाँच समितियों का कथन किया है-ईर्या (चलते समय चार हाथ पृथ्वी देखकर चलना), भाषा (हितमित वचन बोलना), एषणा (शुद्ध आहार लेना) आदान (धर्म के उपकरणों को यत्नपूर्वक उठाकर लेना) और निक्षेपण (पुस्तक, कमण्डलु, आदि को सावधानी से रखना)।
भव्वजबाहेणत्थं जिणमग्गे जिणवरेहि जह भणियं ।
णाणं णाणसरूवं अप्पाणं तं वियाणेहि॥१०१॥ भव्य जनों के उद्बोधन के लिए जिनेन्द्र भगवान् के जिनमार्ग में ज्ञान और ज्ञान स्वरूप आत्मा के सम्बन्ध में जैसा कहा है वैसा ही जानना चाहिए।
जीवाजीवविभत्ती जो जाणइ सो हवेइ सण्णाणी।
रायादिदोसरहिओ जिणसासणे मोक्खमग्गोत्ति ॥१०२॥ जिन शासन में यही मोक्ष का मार्ग है कि आप जीव-अजीव के भेद को जानने वाले सम्यग्ज्ञानी हों और रागद्वेष से रहित रहें। --
दसणणाणचरित्तं तिण्णि वि जाणेह परमसद्धाए।
जंजाणिऊण जोई अइरेण लहंति णिव्वाणं ॥१०३ ॥ दर्शन, ज्ञान और चारित्र को श्रद्धापूर्वक जानना चाहिए। इसे जानकर ही योगीजन शीघ्र निर्वाण प्राप्त करते हैं।