Book Title: Atmatattva Vichar
Author(s): Lakshmansuri
Publisher: Atma Kamal Labdhisuri Gyanmandir

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Page 16
________________ दस सूत्र, व्याख्याप्रनप्ति तथा उत्तराध्ययनसूत्र में उपलब्ध हैं। इनके अतिरिक्त १२-वे अंग दृष्टिवाद के अन्तर्गत कर्मप्रवाद नाम का एक बड़ा विस्तृतशास्त्र था, जो अब लुप्त हो गया। बाद के आचार्यों ने भी इस शास्त्र पर बड़े विस्तार से विचार किया है और उन कृतियो पर विस्तृत भाप्य तथा टीकाएँ उपलब्ध है। ___ कर्म-दर्शन-सम्बन्धी जैन-गाखो में इतने पारिभापिक शब्द हैं तथा पूरे शास्त्र का इतना विस्तार है कि, उन सब को पढ़कर आत्मसात कर पाना बड़े अध्यवसाय का कार्य है और विना गुरु-मुख से समझे समझ पाना बड़ा कठिन है। जैन-दर्शन पुरुपार्थ का समर्थक है और उसकी मान्यता है कि, व्यक्ति यदि उचित प्रयास करे तो कर्म ढीले बंध सकते है और उनके भोगो से बहुत-कुछ व्यक्ति मुक्त रह सकता है। ___ गोशालक के आजीवक-सम्प्रदाय के सदालपुत्र-नामक एक श्रावक को भगवान् ने स्वयं पुरुपार्थ के महत्त्व का ज्ञान कराया था । जैनशास्त्र की मान्यता है कि, पॉच गतियो-(१) नारकी (२) तियच (३) मनुष्य (४) देव (५) मोक्ष-मे से व्यक्ति अपने पुरुपार्थ से चाहे जो प्राप्त कर सकता है। कर्म को ढीला वॉधने अथवा उनसे सर्वथा मुक्ति का उपाय धर्म है । जैन धर्म धर्म को दो रूपो मे स्वीकार करता है-(१) गृहस्थ-धर्म (२) साधु-धर्म । इस प्रकार कर्म-दर्शन के तत्त्व को समझने के लिए (१) आत्मा (२ ) कर्म और (३) धर्म इन तीनों का समझना आवश्यक है। प्रखर विद्वान जैनाचार्य विजयलक्ष्मण सूरि-रचित प्रस्तुत ग्रन्थ मे इन्हीं तीनो विपयो पर ४६ व्याख्यान संगृहीत हैं। ये

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