Book Title: Anusandhan Swarup evam Pravidhi
Author(s): Ramgopal Sharma
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुसंधान की उपयोगिता शोध या अनुसंधान का हर क्षेत्र में बहुत महत्त्व है। ज्ञान के क्षेत्र में तो इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है। समय और स्थान के अनुसार ज्ञान में भी परिवर्तन होता रहता है। जो वस्तु आज जिस रूप में है या आज उसकी जो विशेषता है, वह कल अर्थात् कुछ काल के पश्चात् भी रहेगी यह कहना कठिन है । एक देश का सत्य दूसरे देश में बदल सकता है। यही कारण है कि हमें हर प्रकार के ज्ञान को समय-समय पर प्रयोग करके वैज्ञानिक दृष्टि से शुद्ध करना पड़ता है। यदि ऐसा न किया जाए, तो एक देश-विदेश का ज्ञान विभिन्न प्रभावों से मलिन होकर दूसरे समय में अन्य देश के जीवन को संकट में डाल सकता है। इसीलिए शिक्षा का मुख्य कार्य केवल ज्ञान का प्रसार करना ही नहीं है, बल्कि ज्ञान को शुद्धता की कसौटी पर कसते चलना भी है। इस दृष्टि से शोध या अनुसंधान की ज्ञान के संशोधन में बहुत उपयोगिता है। साहित्यिक शोध के विषय में विद्वानों का ध्यान बीसवीं शताब्दी में ही विशेष रूप से गया, उससे पहले आलोचना ही महत्त्वपूर्ण थी। अब यह सभी विद्वान मानने लगे है कि साहित्यिक रचनाओं के सत्यों, मूल्यों और कलात्मक सौन्दर्य को प्रकट करने के लिए शोध की दृष्टि से आलोचना करना बहुत आवश्यक है। किसी भी साहित्यिक रचना के सौन्दर्य की व्याख्या करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उस सौन्दर्य के कारणों, स्थितियों और आधारों का पता लगाना भी अब आवश्यक माना जाने लगा है। इन बातों को समझे बिना रचना-सौन्दर्य कोई अर्थ नहीं रखता। उदाहरण के लिए, यदि किसी रचना में उपवन,कोयल की कूक, बसंत की मोहकता आदि का वर्णन है और वातावरण में कोई नर्तकी नृत्य कर रही है, भाषा में भी मधुरता है, तो आलोचक उस समस्त वर्णन को सुन्दर बता सकता है। लेकिन जब वह आलोचक यह भी पता लगाता है, अर्थात् इस बात का शोध करता है कि वह वर्णन किस क्षेत्र से सम्बन्धित है तथा वह नर्तकी नृत्य क्यों कर रही है और उसे यह पता चलता है कि उस For Private And Personal Use Only

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