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74/अनुसंधान : स्वरूप एवं प्रविधि हस्तलिखित प्रतियों का आवश्यक विवेचन तथा वंशवृक्ष आदि सम्बन्धी निर्णय भी विस्तार से भूमिका में दिया जाना चाहिए । पाण्डुलिपि-सम्पादक को उस रचना की विस्तृत समीक्षा भी भूमिका में देनी चाहिए तथा साहित्य के इतिहास में उसके स्थान का भी निर्धारण करना चाहिए।
उपसंहार
पाण्डुलिपि-सम्पादन का कार्य मानव जाति की सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखने का ही कार्य नहीं है, उसे अधिकाधिक उपयोगी बनाने का भी कार्य है। अतीत काल के संचित मानवीय अनुभवों, विचारों, कल्पनाओं और ज्ञान को अंधकार के गर्त से निकालकर भावी पीढ़ी को सौंपना एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य है। बड़े-बड़े समाज-सुधारक,नेता, साहित्यकार,पंडित, वैज्ञानिक आदि मानव-हित के जो श्रेष्ठ कार्य करते हैं, उनसे अधिक श्रेष्ठ और श्रेयष्कर पाण्डुलिपि-सम्पादन का कार्य है। इसी कार्य के फलस्वरूप आज इलिएट, होमर, वाल्मीकि, तुलसी,सूर आदि के महान् काव्य जीवित हैं,जो अनेक शताब्दियों से मानव जाति के पथ-प्रदर्शन के लिए प्रकाश-स्तम्भ बने हुए हैं तथा आगे भी जिनका उपयोग होता रहेगा।
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