Book Title: Anusandhan Swarup evam Pravidhi
Author(s): Ramgopal Sharma
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

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Page 85
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 14 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुलनात्मक अनुसंधान अनुसंधान के क्षेत्र में तुलनात्मक दृष्टि के प्रयोग पर भी बहुत बल दिया जाता है। यों तो किसी भी विषय के अनुसंधान में तुलनात्मक पद्धति का प्रयोग सार्थक हो सकता है, किन्तु भाषा, साहित्य, दर्शन, इतिहास एवं ललितकलाओं के क्षेत्र में इस पद्धति की विशेष उपयोगिता होती है। हिन्दी साहित्य के इतिहास का अध्ययन तुलनात्मक दृष्टि से किया जाए, तो अनेक नये परिणाम सामने आ सकते हैं। कवियों और महत्त्वपूर्ण कृतियों की तुलना करके किया जाने वाला अनुसंधान अनेक मौलिक तथ्य प्रकाश में ला सकता है। आलोचना के क्षेत्र में तो यह पद्धति अनेक आलोचकों द्वारा अपनाई जाती ही रही है, शोधकर्ता भी यदा-कदा इस पद्धति का सहारा लेते रहे हैं। जिन विषयों पर तुलनात्मक दृष्टि से शोध कार्य हुआ है, उनमें से कुछ शोध-प्रबन्धों के निम्नांकित शीर्षक इसका प्रमाण है। : 1. वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस का तुलनात्मक अध्ययन - विद्या मिश्र । 2. रामायणेतर. संस्कृत काव्य और रामचरित मानस का तुलनात्मक अध्ययन - शिवकुमार शुक्ल । 3. कृतिवासी बँगला रामायण और रामचरित मानस का तुलनात्मक अध्ययन- रामनाथ त्रिपाठी । 4. रामचरित मानस और रामचंद्रिका का तुलनात्मक अध्ययन- जगदीश नारायण । 5. भारतेन्दु और नर्मद : एक तुलनात्मक अध्ययन- अरविन्द कुमार देसाई । 6. हिन्दी और मराठी का निर्गुण काव्य - प्रभाकर माचवे । 7. हिन्दी और मराठी कथा-साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन — शंकरशेष । 8. आधुनिक हिन्दी और मराठी काव्यशास्त्र का तुलनात्मक अध्ययन- मनोहर काले । For Private And Personal Use Only

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