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शब्दकोश - निर्माण की शोध - प्रविधि
हर विषय किसी-न-किसी भाषा में लिखा जाता है। भाषा का विकास विभिन्न बोलियों से होता है। किसी एक क्षेत्र की बोली दूसरे क्षेत्र की बोली से जो साम्य या अंतर रखती है, उसे वैज्ञानिक ढंग से समझकर ही भाषा के शिष्ट स्वरूप के विकास को समझा जा सकता है। इस कार्य के लिए प्रत्येक बोली- वर्ग की शब्दावली का संकलन और उसका विधिवत् कोश निर्माण आवश्यक होता है। अतः यह कार्य भी अनुसंधान के क्षेत्र में ही है
आता
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कोश निर्माण का कार्य बहुत श्रम-साध्य, जटिल तथा विवेक एवं ज्ञान - सापेक्ष है । कोश- निर्माण के लिए शोधकर्ता को शब्दों का अनुसंधान क्षेत्रीय सर्वेक्षण के माध्यम से करना पड़ता है । उसे विभिन्न बोलियों के बोलने वाले व्यक्तियों से सम्पर्क करना पड़ता है और प्रश्नावली तथा रूपरेखा बनाकर अभीष्ट सामग्री तदनुसार प्राप्त करनी होती है। इस कार्य में शिथिलता या लापरवाही हो जाने या सर्वेक्षण कार्य स्वयं न करके दूसरों से कराने पर अशुद्ध परिणाम सामने आते हैं। उदाहरणार्थ, प्रियर्सन ने भारत की भाषाओं और बोलियों का स्वयं सर्वेक्षण नहीं किया था। उसने बाइबिल की एक कहानी चुनकर जिले के कर्मचारियों को भेजी थी और उसका क्षेत्रीय बोलियों में रूपान्तर करा लिया था। इन रूपान्तरों को आधार बनाकर उसने उन बोलियों के परिवारों एवं व्याकरण का निर्धारण कर डाला । फलतः उसके द्वारा प्रकाशित सभी परिणाम विश्वसनीय नहीं हैं। ग्रियर्सन ने गाँवों के पटवारी आदि से प्रत्यक्ष सर्वेक्षण भी कराये और उन्होंने जो कुछ प्रस्तुत किया, उसी को उसने सही मान लिया, जबकि ग्राम स्तर के वे कर्मचारी भाषा के सम्बन्ध में न तो उतना ज्ञान या विवेक रखते थे, न संग्रह में उतने सावधान ही रह सकते थे ।
कोश-निर्माण के लिए यदि इस प्रकार अन्य लोगों की सहायता ली जाती है और घर बैठकर शब्दार्थ का निर्णय कर लिया जाता है, तो वह कार्य विश्वसनीय तथा सत्ताधारी नहीं कहा जा सकता ।
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