Book Title: Anusandhan Swarup evam Pravidhi
Author(s): Ramgopal Sharma
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

View full book text
Previous | Next

Page 90
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 80 / अनुसंधान : स्वरूप एवं प्रविधि भाषा में शब्द की प्रधानता अवश्य रहती है, किन्तु कोई भी शब्द अर्थ के बिना उपयोगी नहीं होता और इसीलिए वह भाषा का अंग नहीं बन सकता । शब्द का संकलन मात्र शब्द-कोश नहीं है, उसके विभिन्न अर्थों का संकलन भी आवश्यक होता है । यह कार्य गहन क्षेत्रीय सर्वेक्षण चाहता है । साहित्य में जो भाषा प्रयुक्त होती है, उसके अर्थ जीवन से ही आते हैं और यह जीवन वहीं मिलता है जहाँ सहजता और सरलता है। अतः गाँव ही प्रायः भाषा को वह शब्दावली प्रदान करते हैं, जो अर्थ-भंगिमा के कारण भाषा की शक्ति बनती है । उसका दूसरा साधन साहित्यिक ग्रन्थ होते हैं । संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि मूलतः लोक-जीवन ही शब्द-कोश के निर्माण के लिए प्रमुख स्रोत होता है । इस दृष्टि से लोक में प्रचलित कहानियों, लोक-गीतों आदि का संकलन शब्द-कोश के निर्माण के लिए बहुत उपयोगी होता है । यह संकलन - कार्य अनुसंधान की सर्वेक्षण पद्धति पर आश्रित है । यहाँ यह भी ध्यान में रखने वाली बात है कि जो शब्द संकलित किये जाएँ वे केवल एक ही व्यक्ति से सुने हुए नहीं होने चाहिएँ, क्योंकि एक व्यक्ति कभी जल्दबाजी में या घबराकर या मुख-सुख के लिए ऐसा उच्चारण भी कर सकता है, जिससे शब्दों का सही रूप प्रकट न हो । अतः जब कुछ शब्द कई व्यक्तियों से सुन लिये जाएँ तथा प्रयोगार्थ में समानता की पकड़ हो जाए, तभी उन्हें शब्द-कोश में सम्मिलित करना चाहिए। ऐसा करने पर ही शोधकर्ता का कोश- कार्य प्रामाणिक हो सकता है 1 1 शब्दों के पर्यायों पर भी बहुत सावधानी से विचार करना चाहिए । यों तो पर्यायवाची शब्दों को एक ही अर्थ में रख दिया जाता है, किन्तु वास्तविकता यह नहीं है । कोई भी शब्द किसी भी पर्यायवाची का समानार्थक नहीं हो सकता। सभी पर्यायवाची शब्दों में कुछ-न-कुछ अंतर अवश्य होता है । यथा, जल के पर्यायवाची सलिल, पानी आदि शब्द समग्रतः एक ही अर्थ नहीं रखते। उनके अर्थों में भाव की दृष्टि से कुछ-न-कुछ अन्तर अवश्य होता है । शब्दकोश- निर्माण के समय अर्थ लिखने का कार्य इस अन्तर की स्पष्टता पर आधारित होना चाहिए। इसी प्रकार विदेशी या अन्य भाषाओं के शब्दों को भी पर्यायवाची मानकर नहीं चल सकते, उनमें अर्थ की समानता ही स्वीकार की जा सकती है । जो शब्द एकत्र किये जाएँ, उनके व्याकरणिक रूपों पर भी ध्यान देने की बहुत आवश्यकता होती है। उच्चारण तथा व्युत्पत्ति भी स्पष्ट करनी पड़ती है । अतः आवश्यकतानुसार प्रयोग के उदाहरण भी एकत्र करने पड़ते हैं । साहित्य या लोक-साहित्य से लिये गये शब्दों के उदाहरण तो मिल सकते हैं, किन्तु बोलने वालों से लिये गये शब्दों के उदाहरणों में फिर वही त्रुटि हो सकती है कि कोई गलत बोल रहा हो और शोधार्थी उसे ज्यों का त्यों चुन ले । जब उदाहरण नहीं मिलते या शब्दों से जिसका अर्थ स्पष्ट नहीं होता, - उसको स्पष्ट करने के लिए कभी - कभी चित्र भी बनाने पड़ते हैं । ये चित्र बहुत छोटे तथा संकेतात्मक होने चाहिएँ। लोक-जीवन में उनके प्रयोग के साथ बहुत से प्रतीक भी मिलते हैं। उन प्रतीकों को भी बहुत छोटे आकार में शब्दद-कोश में दिया जा सकता है I For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115