Book Title: Anusandhan Swarup evam Pravidhi
Author(s): Ramgopal Sharma
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

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Page 94
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 84 / अनुसंधान : स्वरूप एवं प्रविधि वस्तुतः मानव-मूल्य समान ही होते हैं। यह मानना भ्रम होगा कि किसी एक जाति के जीवन-मूल्य दूसरी जाति के जीवन-मूल्यों के विरोधी भी हो सकते हैं । जितने भी मानवीय गुण हैं, सदा और सर्वत्र समान होते हैं । उन्हें भिन्न मानना किसी भी जाति- विशेष या व्यक्ति-विशेष का अज्ञान ही कहा जायेगा। इस अज्ञान का निवारण शोध के द्वारा ही किया जा सकता है । वस्तुतः राजनीति या निहित स्वार्थों से प्रभावित व्यक्ति या वर्ग ऐसे भ्रम फैलाते हैं, जिनसे जीवन के वास्तविक मूल्य छिप जाते हैं तथा समाज-विरोधी बातों में लोगों की रुचि बढ़ जाती है। सामाजिक बुराइयाँ बढ़ने लगती हैं। अपराध प्रवृत्तियाँ सम्मान पाने लगती हैं। भीड़-तंत्र, समाज के उच्चादर्शों को अतीत की सड़ी-गली परम्पराएँ बताकर नष्ट करने पर उतारू हो जाता है। शिक्षा-दीक्षा पर भी उसका अधिकार हो जाता है। फलतः ऐसे समाज की नींव पड़ने लगती है, जो अपने उच्च जीवन-मूल्यों को या तो विस्तृत कर देता है या उनका उपहास करने लगता है। धीरे-धीरे ऐसा समय आता है, जब पथ - भ्रष्ट समाज को किसी भी दिशा में मुक्ति का मार्ग नहीं मिलता। ऐसे समाज को नया प्रकाश देने के लिए शोध के द्वारा विस्मृत मानव मूल्यों की निधि सौंपने के लिए विद्वान् शोधकर्ता ही सामने आते हैं। यदि समय पर मानव मूल्यों की पुनर्स्थापना के लिए सही दिशा में अनुसंधान न किया जाए, तो सम्पूर्ण राष्ट्र भयंकर संकटों में पड़ जाता है 1 जीवन की धारा को सीमाओं में प्रवाहित करने के लिए प्रत्येक देश का प्रत्येक समाज ऐसे नियम बनाता है, जो अन्य देश या समाज के लिए अविरोधी तो होते ही हैं, साथ ही उनसे पारस्परिक अन्तर्विरोध की चिंगारियाँ भी नहीं निकलतीं । किन्तु कुछ ऐसे व्यक्ति भी समय-समय पर जन्म लेते हैं, जो अपनी आसुरी शक्तियों का प्रदर्शन करके एक वर्ग को दूसरे वर्ग से लड़ा देते हैं। विभिन्न तंत्र विध्वंसक गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं और उनके परिणाम-स्वरूप समाज की शान्ति-व्यवस्था संकट में पड़ जाती है। अतः मनुष्य के चरित्र के विभिन्न पक्षों का मूल्यों की दृष्टि से अनुसंधान करके उन पर छाई धूल को हटाना आवश्यक हो जाता है 1 शोधकर्ता का क्षेत्र कोई भी हो, विषय-सम्बन्धी अन्तर हो, किन्तु मूल्य-दृष्टि में कोई अन्तर नहीं पड़ता। साहित्य, कला, इतिहास या दर्शन की रचनात्मक शैलियाँ भिन्न हो सकती हैं, स्रोतों में अन्तर हो सकता है, किन्तु शोधाकर्ता के लिए उनके अध्ययन की मूल्य-दृष्टि भिन्न नहीं हो सकती या ऐसा भी नहीं हो सकता कि वह केवल विषय की वास्तविकता का अनावरण करके रह जाए तथा मूल्यों की उपेक्षा कर दे । उदाहरणार्थ, किसी जाति के इतिहास पर अनुसंधान करते समय किसी राजा, वर्ग या समाज की वीरता का अनुशीलन उसके द्वारा किये गये कार्यों के परिणामों की उपेक्षा नहीं कर सकता। यदि किसी दुर्बल वर्ग पर अत्याचार करने में वीरता दिखाई गई है, तो उसे कोई भी अनुसंधानकर्ता वीरता की महिमा से मंडित नहीं कर सकता । नारियों पर बल-प्रयोग करके और आदर्शों की झूठी दुहाई देकर उन्हें आपत्तियों की आग में झोंकने वाला शासन या समाज प्रशंसा का पात्र नहीं बन सकता । अश्लीलता का प्रदर्शन करने For Private And Personal Use Only

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