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94/अनुसंधान : स्वरूप एवं प्रविधि केशवदास : एक अध्ययन" (डॉ. हीरालाल दीक्षित), मध्यकालीन हिन्दी कवयित्रियाँ (डॉ. सावित्री), आचार्य भिखारीदास (डॉ. नारायणदास खन्ना), सूर और उनका साहित्य (डॉ. हरवंशलाल शर्मा), डॉ. रांगेय राघव : जीवन और साहित्य (डॉ. दिनेश के निर्देशन में डॉ. विश्वम्भर व्यास द्वारा लिखित) आदि की गणना की जा सकती है। इन ग्रंथों से हिन्दी साहित्य के अनेक नये ग्रंथों और उनके रचयिताओं का अध्ययन प्रस्तुत हुआ है।
शिष्ट साहित्य का अध्ययन हिन्दी में प्रवृत्तियों की दृष्टि से भी अत्यधिक संतोषजनक रूप में हुआ है। दर्शन की विभिन्न धाराओं और मानवीय चिंतन के विभिन्न दृष्टिकोणों से साहित्य को देखा-परखा गया है। साहित्य-शास्त्र के सिद्धान्तों पर भी अनेक कृतियों को कसा गया है तथा जो भी परिणाम उपलब्ध हुए हैं,वे हिन्दी साहित्य की समृद्धि ही नहीं करते, गौरव-वृद्धि भी करते हैं। भारतीय और पाश्चात्य जीवन-दृष्टियों से कृतियों का मूल्यांकन करके शोधकर्ताओं ने हिन्दी साहित्य के समस्त दाय को भविष्य के हाथों में सुरक्षित कर दिया है। प्रवृत्तियों के अंतर्गत जो शोध-कार्य हुआ है, उसमें हम आधुनिक कविता में निराशावाद और हिन्दी काव्य में नियतिवाद ग्रंथों को उपलब्धियों की दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण पाते हैं। प्रथम ग्रंथ में डॉ.शंभूनाथ पाण्डेय ने आधुनिक कविता की एक प्रेरक प्रवृत्ति के रूप में निराशावाद को देखा है। हिन्दी काव्य में नियतिवाद (डॉ.दिनेश) जो कि सन् 1960 में आगरा विश्वविद्यालय से पी-एचड़ी.के लिए स्वीकृत हुआ और 1963 में प्रकाशित हुआ,आदिकाल से आधुनिक काल तक के समस्त काव्य का नियतिवादी दृष्टि से अनुशीलन प्रस्तुत करता है। इस ग्रंथ में पहली बार समस्त हिन्दी काव्य के पीछे निहित भारतीय जीवन-दर्शन और उसके कलापरक प्रभावों को गंभीरतापूर्वक उद्घाटित किया गया है। छायावाद, प्रगतिवाद, स्वच्छन्दतावाद और गांधीवाद जैसी आधुनिक साहित्य प्रवृत्तियों का भी अनुशीलन कई दृष्टियों से कुछ शोधकर्ता प्रस्तुत कर चुके हैं।
हिन्दी साहित्य का निर्माण मध्यकाल तक या तो विभिन्न दार्शनिक सम्प्रदायों में होता रहा था या राजाश्रय में शास्त्रीय सम्प्रदायों में हुआ था। कई शोधकर्ताओं ने उन सब सम्प्रदायों का भी अलग-अलग विस्तार से अनुशीलन किया है और इस प्रकार उन संप्रदायों के साहित्यों का गौरव प्रकाश में आया है। डॉक्टर विजयेन्द्र स्नातक का “राधावल्लभ सम्प्रदाय : सिद्धान्त और साहित्य” इस वर्ग का एक महत्त्वपूर्ण शोध-प्रबन्ध है। अष्टछाप और वल्लभ सम्प्रदाय डॉक्टर दीनदयाल गुप्त का इसी वर्ग का एक अन्य श्रेष्ठ शोध-ग्रंथ कहा जा सकता है। नाटक, उपन्यास, कहानी, गद्य-काव्य, निबंध, काव्यशास्त्र आदि पर भी हिन्दी में विभिन्न दृष्टियों से शोध-कार्य हुआ है। नाटक पर शास्त्रीय अध्ययन की दृष्टि से डॉक्टर जगन्नाथ प्रसाद शर्मा का प्रसाद के नाटकों का शास्त्रीय अध्ययन" महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। उपन्यास-साहित्य पर डॉ. देवराज उपाध्याय ने मनोवैज्ञानिक दृष्टि से “हिन्दी कथा-साहित्य और मनोविज्ञान" ग्रंथ लिखा है। इस ग्रंथ ने मनोवैज्ञानिक अध्ययन की परम्परा आगे बढ़ाई है। कहानियों पर डॉक्टर लक्षमीनारायण लाल का “हिन्दी कहानी की शिल्प-विधि का विकास" ग्रंथ एक उपलब्धि कहा जा सकता है। डॉ. पदमसिंह शर्मा 'कमलेश' ने “हिन्दी गद्य-काव्य का विकास' शोध-ग्रंथ लिखकर गद्य-काव्य के क्षेत्र में प्रशंसनीय कार्य किया है।
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