________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हिन्दी-अनुसंधान : विकास, उपलब्धियाँ और सुझाव/99 डाला। यह लेख “नागरी प्रचारिणी पत्रिका” में सन् 1899 में प्रकाशित हुआ था। ग्रीज ने तुलसी के जीवन परिचय को प्रामाणिक रूप देने की चेष्टा की है, किन्तु प्राप्त तथ्यों की छानबीन करके वे कोई विशेष मौलिक बात नहीं कर सके हैं। जीवन-परिचय के अन्तर्गत उन्होंने यही बताया है कि तुलसीदास सन् 1545-1555 के मध्य राजापुर में उत्पन्न हुए थे, उनका जन्म का नाम रामबोला, पिता का आत्माराम, माता का हुलसी तथा गुरु का नाम नरहरि था। तुलसी की काव्यगत उपलब्धियों के सम्बन्ध में ग्रीब्ज का अनुसंधान निश्चय ही महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है। उन्होंने ग्रियर्सन से भी एक चरण आगे बढ़कर तुलसी की काव्य-प्रतिभा एवं शिल्प-क्षमता का उद्घाटन किया है।
- पीज के पश्चात् टेसीटोरी का “इल रामचरित मानस इल रामायण” नामक निबंध, जो 1911 ई. में प्रकाशित हुआ, स्मरणीय है। इस निबंध में विद्वान लेखक ने वाल्मीकि रामायाण तथा तुलसीकृत रामचरितमानस की संक्षेप में तुलना की है और यह निष्कर्ष निकाला है कि वाल्मीकि के विपरीत तुलसी का कथा-संघटन अधिकांशतः नैतिक आदर्शपरक है एवं घटना-प्रवाह में प्रायः यथार्थ का प्रभाव पाया जाता है उनकी दृष्टि में तुलसी का काव्य-शिल्प वाल्मीकि से अधिक प्रौढ़ एवं सक्षम है। . बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों में पाश्चात्य विद्वानों ने तुलसी-सम्बन्धी जो शोध-कार्य किया, उसमें जे. ई. कारपेंटर कृत "थियोलॉजी ऑफ तुलसीदास" का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस ग्रंथ में प्रथम बार विस्तार से तुलसी के आध्यात्मिक एवं धार्मिक विचारों का विवेचन मिलता है, किन्तु इस अध्ययन की सबसे बड़ी सीमा यह है कि कारपेंटर ने तटस्थ दृष्टि का बहुत कम परिचय दिया है एवं अधिकांश स्थलों पर उसकी ईसाई विचार-धारा प्रभावी रही है।
कारपेंटर के पश्चात् एफ. ए. केई में पुनः हमें एक तटस्थ तथा शोध-पूर्ण दृष्टि मिलती है। उन्होंने हिंदी साहित्य के इतिहास पर ग्रंथ लिखते समय तुलसी पर भी गंभीरता से विचार कर यह सिद्ध किया कि रामचरित मानस की रचना का मूल स्रोत, वाल्मीकि रामायण नहीं, अपितु अध्यात्म रामायण है । “केई" ने यह भी सिद्ध किया कि रामचरितमानस संसार के उत्कृष्टतम महाकाव्यों में शीर्षस्थ है।
. बीसवीं शताब्दी के मध्यबिन्दु पर पाश्चात्य मनीषी कामिल बुल्के का शोध-कार्य सर्वाधिक महत्त्व के साथ स्थापित हुआ। उन्होंने सन् 1950 ई.में 'रामकथा' नामक शोध-ग्रंथ प्रकाशित कराया, जिसमें संदर्भानुसार तुलसी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर भी प्रकाश डाला गया है। कामिल बुल्के ने भी यह स्वीकार किया है कि तुलसी की रामचरितमानस पर अध्यात्म रामायण का प्रभाव अधिक है।
__ डगलस पी. हिल छठे दशक के तुलसी-सम्बन्धी अन्य महत्त्वपूर्ण पाश्चात्य अध्येता हैं. जिन्होंने 'दि होली लेक ऑफ दि एक्ट्स ऑफ राम' नामक ग्रंथ सन् 1952 में प्रकाशित कराया। इस ग्रंथ में उन्होंने तुलसी के आध्यात्मिक एवं धार्मिक विचारों को अधिक महत्त्वपूर्ण सिद्धं किया है। जहाँ उनकी दृष्टि तुलसी के साहित्यिक पक्ष पर गई है, वहाँ भी उन्होंने उसकी
For Private And Personal Use Only