Book Title: Anusandhan Swarup evam Pravidhi
Author(s): Ramgopal Sharma
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

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Page 108
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 98/अनुसंधान : स्वरूप एवं प्रविधि दोहराया है। आधार में मात्र वे जनश्रुतियों ही रही हैं, जिन्हें विल्सन ने भी सत्य माना था। उन्हीं के अनुसार तासी ने तुलसी के पिता का नाम आत्माराम पंत और पत्नी का नाम ममता देवी बतलाया है। तुलसी के साहित्य के विषय में तासी ने कोई खोजपूर्ण बात नहीं लिखी, 'केवल रामचरितमानस के काण्डों का चलता हुआ परिचय दिया है और कहा है कि इस काव्य की रचना “पूर्वी हिन्दुई” में हुई है। तुलसी-साहित्य के तीसरे पाश्चात्य अध्येता एफ.एस. ग्राउज माने जाते हैं। इन्होंने “रामायण ऑफ तुलसीदास” ग्रंथ की रचना की। रामचरितमानस का अंग्रेजी में अनुवाद करके उसकी जो भूमिका पाउज ने लिखी, उससे प्रथम बार तुलसी-सम्बन्धी शोध-कार्य को एक महत्त्वपूर्ण दिशा मिली। उन्होंने तुलसी के जीवन-चरित पर पूर्व विद्वानों की तुलना में कुछ अधिक प्रामाणिकता से प्रकाश डाला तथा तुलसी के साहित्य को भी प्रत्यक्षतः अध्ययन का विषय बनाया। उन्होंने रामचरित मानस की कथागत विशेषताओं, पात्रों के चरित्र-संघटन तथा काव्य-शिल्प की मौलिकताओं का भी संक्षेप में उद्घाटन किया और यह स्थापना की कि तुलसी-कृत रामचरितमानस वाल्मीकि रामायण का अनुकरण नहीं है अपितु उसमे अनेक दृष्टियों से मौलिक मार्ग अपनाया गया है । यथा, तुलसी ने रामकथा को अपने ढंग से कहीं विस्तार और कहीं संकोच देकर प्रस्तुत किया है एवं वाल्मीकि की व्यास-शैली के स्थान पर उन्होंने समास शैली अपनाई है। ग्राउज पहले विचारक थे, जिन्होंने तुलसी-काव्य की भाषागत सम्पन्नता का भी गंभीरता से उद्घाटन किया है। ग्राउज के पश्चात् तुलसी-सम्बन्धी शोध-कार्य को आगे बढ़ाने वाले विद्वानों में डॉ. ग्रियर्सन का महत्त्वपूर्ण नाम आता है। इन्होंने सन् 1889 ई. में “दि वर्नाक्यूलर लिट्रेचर ऑफ हिन्दुस्तान” नामक ग्रंथ प्रकाशित कराया। इस ग्रन्थ में प्रथम बार तुलसीदास के सम्बन्ध में तथ्याधारित सामग्री प्रस्तुत हुई है। सन् 1893 में उन्होंने "नोट्स ऑन तुलसीदास” नामक एक निबन्ध “इण्डियन एण्टीक्वेटी” में छपाया तथा 1903 ई. में “एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल” में “तुलसीदास : कवि एवं धर्म सुधारक” नाम से उनका एक अन्य निबन्ध प्रकाशित हुआ। इन रचनाओं के माध्यम से ग्रियर्सन ने प्रथम बार तुलसी-सम्बन्धी अध्ययन को वास्तविक शोध-कार्य का रूप दिया। उन्होंने तुलसीदास के जीवन से सम्बन्धित सामग्री की वैज्ञानिक ढंग से छानबीन की तथा कृतियों की नामावली एवं रचनाकाल पर भी प्रकाश डाला। तुलसी के व्यक्तित्व के निर्धारण में उन्होंने सभी उपलब्ध साधनों का उपयोग करने की चेष्टा की तथा तुलसीदास की काव्य-प्रतिभा का भी यथा-सम्भव आकलन किया। उन्होंने तुलसी की धार्मिक देन का विश्लेषण कर यह तथ्य प्रतिपादित किया कि तुलसी केवल धर्म-सुधारक ही नहीं, एक श्रेष्ठ महाकवि भी थे। इस निष्कर्ष तक पहुँचने के लिए ग्रियर्सन ने तुलसी-साहित्य के विभिन्न कलात्मक पक्षों पर भी प्रकाश डाला और जो कुछ कहा, उसके लिए पर्याप्त आधार प्रस्तुत किये। - डॉ. ग्रियर्सन ने तुलसी-सम्बन्धी शोध-कार्य को एक वैज्ञानिक दिशा में मोड़कर जो पथ प्रशस्त किया था, उस पर चलने वाले पाश्चात्य विद्वानों में सर्वप्रथम स्मरणीय है-- एडविन ग्रीञ । उन्होंने एक लेख लिखकर तुलसीदास के जीवन पर विस्तार से प्रकाश For Private And Personal Use Only

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