Book Title: Anusandhan Swarup evam Pravidhi
Author(s): Ramgopal Sharma
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

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Page 107
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हिन्दी-अनुसंधान : विकास, उपलब्धियाँ और सुझाव/97 (1) शोध की आधारभूत सामग्री ___तुलसी के जीवन और साहित्य के सम्बन्ध में शोध करने वाले विद्वानों के सामने सबसे बड़ी समस्या आधारभूत सामग्री से सम्बन्धित है। किसी भी कवि के सम्बन्ध में अनुसंधान के लिए दो स्त्रोतों से सामग्री मिलती है- अन्तः साक्ष्य और बाह्य साक्ष्य । जहाँ तक अन्तःसाक्ष्य का प्रश्न है, तुलसी ने ऐसे बहुत कम संकेत अपनी रचनाओं में दिये हैं जिनसे उनके जीवन और साहित्य-साधना का पूर्ण स्वरूप समझा जा सके । बाह्य साक्ष्य के अन्तर्गत गौसाई-चरित, मूल गोसाई-चरित, तुलसी चरित, भक्तमाल, प्रियादास की टीका, दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता, तुलसीदास स्तव एवं “भविष्य पुराण” नामक ग्रंथ तथा काशी, अयोध्या, राजापुर एवं सौरों में विभिन्न रूपों में उपलब्ध सामग्री तथा जनश्रुतियों को सम्मिलित किया जाता है। इसी सामग्री के आधार पर अब तक तुलसी-सम्बन्धी समस्त शोध कार्य चल रहा है। (2) शोध-कार्य का प्रारंभ तुलसी जन-मानस से अभिन्न हो जाने के कारण, साधारण पाठकों के लिए शोध का विषय नहीं रह गये थे। यही कारण है कि लगभग ढाई सौ वर्षों तक उनके संबंध में खोज-बीन करने की इच्छा तक भारतीय पाठकों और विद्वानों के हृदय में उत्पन्न नहीं हुई। सबसे पहले सन् 1931 ई. के पाश्चात्य विद्वान एच. एच. विल्सन ने इस ओर ध्यान दिया। यद्यपि उन्होंने तुलसी के संबंध में सामान्य जानकारी ही प्रस्तुत की, तथापि एक ऐसा मार्ग बनाने का श्रेय उन्हें मिला, जिस पर बड़े उत्साह से अनेक पाश्चात्य एवं प्राच्य विद्वान अभी तक चले आ रहे हैं। (3) पाश्चात्य विद्वानों का शोध-कार्य तुलसी-सम्बन्धी कार्य के जन्मदाता एच.एच. विल्सन ने कोई स्वतंत्र शोध-ग्रंथ नहीं लिखा । एशियाटिक रिसर्च के 1835 ई.में प्रकाशित भाग 18 में “रिलिजियस सैक्ट्स ऑफ हिन्दूज” नामक केवल एक निबंध उन्होंने छपाया था। इस निबन्ध में धार्मिक संदर्भ में तुलसीदास का स्मरण किया गया है और इसी प्रसंग में उनके जीवन के विषय में अनुश्रुतियों के आधार पर कुछ तथ्य प्रस्तुत किये गये हैं। उन्होंने जनता में प्रचलित तुलसी-जीवन-विषयक सामान्य तथ्यों का संकलन मात्र किया है। अतः उनके द्वारा प्रस्तुत सामग्री, शोध-कार्य की प्रारम्भिक देन से अधिक कुछ नहीं मानी जा सकती। विल्सन के निबन्ध के 8 वर्ष पश्चात् सन् 1839 ई. में फ्रांस के विद्वान गार्सा द तासी ने “इस्त्वार द लितरेत्यूर ऐंदुई-ए-ऐंदुस्तानी” नामक ग्रंथ प्रकाशित कराया। हिन्दी साहित्य का यह प्रथम इतिहास माना जाता है। इस ग्रंथ में तासी ने तुलसी के जीवन के सम्बन्ध में परम्परा से प्राप्त तथ्यों को ही प्रस्तुत किया है । विल्सन ने अपने निबंध में तुलसी के जन्म, जाति, पत्नी-प्रेम, गृह-त्याग, भ्रमण, हनुमान का दर्शन, शाहजहाँ का कोप और उससे मुक्ति आदि जिन तथ्यों का आकलन किया था, उन्हीं को तासी ने भी कुछ नये ढंग से For Private And Personal Use Only

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