Book Title: Anusandhan Swarup evam Pravidhi
Author(s): Ramgopal Sharma
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

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Page 112
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 102/अनुसंधान : स्वरूप एवं प्रविधि में प्रकाशित रामनरेश त्रिपाठी द्वारा संपादित मानस का पाठ'तुलसी ग्रंथावली में संकलित मानस के पाठ की तुलना में कुछ अधिक शुद्ध है, किन्तु विवेचना के खण्ड में जो एक वर्ष पश्चात् “तुलसीदास और उनकी कविता" के नाम से स्वतंत्र पुस्तक के रूप में भी छपा, वे मौलिक अनुसंधान का परिचय नहीं दे सके। मानस के संपादन की परम्परा में रामनरेश त्रिपाठी के संस्करण के साथ ही विजयानन्द त्रिपाठी का भी मानस-पाठ प्रकाशित हुआ था, जो प्रथम ग्रंथ के पाठ की तुलना में अधिक महत्त्व रखता है। इस प्रकार सन् 1936 ई. तक रामचरित मानस के कई संपादित पाठ प्रकाश में आ चुके थे। तुलसी की अन्य रचनाएँ भी छप चुकी थीं। फलतः तुलसी-विषयक शोध-कार्य में गंभीरता लाने के लिए विद्वानों को उपयुक्त भूमिका मिलने लगी। इसी भूमिका पर सन् 1938 में डॉ.बलदेव प्रसाद मिश्र का उपाधि-हेतु प्रस्तुत गंभीर शोध-ग्रंथ “तुलसी-दर्शन" प्रकाशित हुआ, जिसने तुलसी के आध्यात्मिक चिंतन को व्यवस्थित रूप में आकलित कर हिन्दी जगत के समक्ष प्रस्तुत किया। इस ग्रंथ में विस्तार से तुलसी के भक्ति-मार्ग, जीव-कोटियाँ.तुलसी के राम,विरति-विवेक,हरिभक्ति-पथ, भक्ति के साधन एवं तुलसी-मत की विशेषता आदि पर सप्रमाण विचार किया गया है। सन् 1938 में ही गीता प्रेस गोरखपुर से चिमनलाल गोस्वामी एवं नंददुलारे वाजपेयी के संपादन में रामचरित मानस का एक अन्य प्रामाणिक पाठ कल्याण के मानसांक के रूप में भूमिका सहित प्रकाशित हुआ, जिसने तुलसी के सम्बन्ध में पर्याप्त मौलिक तथ्य प्रस्तुत किए। सन् 1942 में डॉ. माताप्रसाद गुप्त के उपाधि हेतु लिखित तुलसीदास शीर्षक शोध-ग्रंथ का प्रकाशन हुआ, जिसमें पूर्वोपलब्ध समस्त तथ्यों तथा आधारभूत सामग्री का वैज्ञानिक ढंग से आकलन किया गया है । इस ग्रंथ में डॉ. गुप्त ने तुलसी के जीवन-वृत्त के कई पक्षों पर प्रथम बार विस्तार से विचार किया है, कृतियों के उपलब्ध पाठों की समीक्षा करके निर्णय दिये हैं तथा उनका काव्यक्रम भी निर्धारित किया है। निश्चय ही यह प्रथम शोध-ग्रंथ है, जिसमें तुलसी की कला एवं आध्यात्मिक विचार-धारा का विस्तार से विवेचन हुआ है और निष्कर्ष निकाले गये हैं, किन्तु यह अध्ययन इतना वस्तुपरक तथा नीरस वैज्ञानिक पद्धति के निकट हो गया है कि तुलसी के मर्म को समझने वाली संवेदना का सर्वत्र अभाव दिखता है । इस अभाव की पूर्ति सन् 1943 में प्रकाशित राजबहादुर लभगौड़ा रचित विश्व साहित्य में 'रामचरित मानस' ग्रंथ से हुई। इस ग्रंथ में तुलसी के जीवन और काव्य की संवेदनात्मक गहराई का सप्रमाण अनुसंधान मिलता है। सन् 1949 ई. में डॉ.श्रीकृष्ण लाल ने “मानस-दर्शन” ग्रंथ लिखा, जिसमें उन्होंने भक्ति-तत्त्व और कवि-व्यक्तित्व का साधिकार विश्लेषण किया। किन्तु उनके निष्कर्ष अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं हैं, क्योंकि उन पर पौराणिक दृष्टि सर्वत्र हावी रही है। डॉ. लाल की कृति के तीन वर्ष पश्चात् सन् 1952 में डॉ.राजपति दीक्षित का शोध-ग्रंथ “तुलसीदास और उनका युग" प्रकाशित हुआ, जिसमें तुलसी के व्यक्तित्व और कृतित्व का पूर्वोपलब्ध समस्त सामग्री की छानबीन करके युग-संदर्भ में गंभीर विश्लेषण किया गया है । तुलसी के युग For Private And Personal Use Only

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