Book Title: Anusandhan Swarup evam Pravidhi
Author(s): Ramgopal Sharma
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

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Page 87
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुलनात्मक अनुसंधान/77 है तो बहुत कम। यदि मराठी भाषा भी जानता हो, तो मराठी साहित्य के इतिहास और प्रवृत्तियों से उसका विधिवत् परिचय नहीं। ऐसी स्थिति में उसकी वस्तुनिष्ठता भी किस प्रकार उससे न्याय करा सकेगी ? निश्चय ही उसका अनुसंधान एकपक्षीय होगा और सभी निष्कर्ष भ्रामक सिद्ध होंगे। ___ अन्य भाषाओं के ग्रन्थों से हिन्दी के प्रन्थों की तुलना करने के लिए कुछ शोधार्थी उन भाषाओं के हिन्दी या अंग्रेजी अनुवादों का सहारा लेते हैं। यह प्रवृत्ति तो तुलनात्मक शोध के लिए सबसे अधिक खतरनाक है । अनुवाद कितना ही विद्वत्तापूर्ण हो, मूल भाषा की अभिव्यक्ति का पूर्णतः अनुसरण नहीं कर पाता । ऐसी स्थिति में की गई तुलना निरर्थक नहीं तो भ्रामक तो हो ही जाती है। तुलनात्मक अनुसंधान के अनेक खतरों में एक खतरा यह भी है कि शोधार्थी किसी विचार या विषय की थोड़ी-सी समता देखकर ही उसे महत्त्वपूर्ण मान लेता है और उसी महत्त्व के प्रतिपादन में जुट जाता है । एक अन्य खतरा तब पैदा होता है, जब शोधार्थी किसी एक पक्ष को श्रेष्ठ सिद्ध करने का विचार लेकर अपने कार्य में प्रवृत्त होता है। जब एक कवि या रचनाकार या प्रवृत्ति पर दूसरे का प्रभाव दिखाने का कार्य हाथ में लिया जाता है,तब कुछ शोधार्थी जिसका प्रभाव दिखाना चाहते हैं,उसको बढ़ा-चढ़ा कर दिखाते हैं और दूसरे पक्ष की हर विशेषता में प्रथम पक्ष का योगदान ही सिद्ध करने लग जाते हैं । इस प्रकार प्रभाववादी तुलना शोध के मूल्यों को ही समाप्त कर देती है। इन खतरों से तुलनात्मक शोधकर्ता को बचना चाहिए। __ तुलनात्मक शोध के लिए अनेक नये क्षेत्र खुले हुए हैं। साहित्य तथा कलाओं में अभी तक इस पद्धति का वस्तुनिष्ठ प्रयोग बहुत कम हुआ है। हजारों पाण्डुलिपियाँ संग्रहालयों में पड़ी हैं और सैकड़ों पाण्डुलिपियाँ प्रकाशन के अभाव में नये लेखकों के घरों में भी सड़ रही हैं । आजकल जो साहित्य लिखा जा रहा है,या कलाओं के शास्त्रों पर विचार हो रहा है या इतिहास एवं दर्शन का चिन्तन चल रहा है, उसका अधिकांश भाग प्रकाशित नहीं हो रहा है । मुद्रण के साधन बढ़े हैं, किन्तु वे कुछ विशेष घरानों के हाथों में ही सीमित हो गये हैं । फलतः उन तक जिनकी पहुँच है, वे ही अपनी कृतियाँ प्रकाशित करा पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में जो प्रकाशित नहीं हो पा रहा है, वह सब निकृष्ट ही नहीं, उसमें बहुत कुछ उत्कृष्ट तम भी है। जो छप रहा है, वह सभी उत्कृष्ट नहीं कहा जा सकता। अत: हस्तलिखित रूप में सुरक्षित वर्तमान लेखकों का साहित्य भी अनुसंधान की अपेक्षा रखता है। वर्तमान लेखकों में ऐसे भी कई लेखक हैं, जो अपने महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों को अप्रकाशित छोड़कर स्वर्ग सिधार चुके हैं। उनकी पोथियों के लिए तो पोथीखानों ने भी अभी तक रुचि नहीं दिखाई। शोधकर्ता ऐसे दुर्लभ होते ग्रन्थों का अनुसंधान करने का निश्चय कर सकता है और समकालीन स्थितियों तथा परिवर्तनों के प्रकाश में तुलनात्मक अनुसंधान कर सकता है, जिससे मानव जाति के हितार्थ नये विचार और नये संदर्भ मिल सके। For Private And Personal Use Only

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