Book Title: Anusandhan Swarup evam Pravidhi
Author(s): Ramgopal Sharma
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

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Page 83
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाण्डुलिपि- सम्पादन/73 4. पाठालोचन - मिलान के पश्चात् ही पाठ-निर्णय की दिशा में पाठालोचन के माध्यम से अग्रसर होने की स्थिति आती है। सम्पादक को क, ख और ग प्रतियों के पाठों को लेकर पाठालोचन की विस्तृत पद्धति अपनानी चाहिए। यह पद्धति बहुत जटिल तो नहीं है, तथापि इसकी पृथक् विवेचन-पद्धति है जिसके लिए स्वतंत्र विश्लेषण अपेक्षित है 1 पाठालोचन करते समय सम्पादक को निर्धारित प्रतियों का मिलान बहुत सावधानी से करना चाहिए । प्रत्येक शब्द के उचित रूप का या उचित शब्द का निर्णय निर्धारित प्रतियों के आधार पर तो करना ही पड़ता है, किन्तु ऐसी स्थिति भी आती है, जब वे प्रतियाँ भी कभी-कभी किसी शब्द या वाक्यांश के उचित निर्णय में सहायक नहीं हो पातीं । मूल पाण्डुलिपि की प्रथम नकल में यदि कोई त्रुटि हो गयी और वह आगे भी दोहरायी जाती रही, तो उस त्रुटि का संशोधन तब तक कैसे हो, जब तक मूल प्रति ही न मिले ? यदि मूल प्रति नष्ट हो जाने या अन्य कारण से अनुपलब्ध है, तब सम्पादक के कार्य की कठिनता बहुत बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में प्रसंग, देश-काल आदि के आधार पर सम्पादक को स्वयं ही निर्णय करना होता है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि मूल पाण्डुलिपि तो उपलब्ध होती है, किन्तु वह रचनाकार की हस्तलिपि न होकर किसी श्रोता-लेखक की हस्तलिपि होती है। ऐसी स्थिति में भी उस आदि या मूल पाण्डुलिपि में त्रुटियाँ हो सकती हैं जिनका निवारण करने के लिए भी सम्पादक को विवेक से प्रसंगादि के आधार पर निर्णय करना चाहिए । इस प्रकार उपलब्ध प्रतियों की सहायता से उस प्रति में संशोधन किये जा सकते हैं, जिसे मूल प्रति या मूल प्रति के सर्वाधिक निकट माना गया है I संशोधन और पाठ - निर्धारण करते समय सम्पादक को पाठान्तर का उल्लेख पाद-टिप्पणियों में करते जाना चाहिए। यदि कहीं आधार प्रति के पाठ के स्थान पर पूर्णतः अनुमानित पाठ दिया गया है, तो उसका भी सप्रमाण उल्लेख पाद-टिप्पणी में होना चाहिए । संशोधन के माध्यम से जब सामग्री का पुनः स्थापन हो जाये, तब रचनाकार के मूल पाठ की अन्य सभी संभावनाओं पर पुनः आलोचनात्मक दृष्टि से विचार होना चाहिए। इस विचार के पश्चात् ही पाठ-निर्धारण की अन्तिम स्थिति आनी चाहिए। इस प्रक्रिया से किये गये परिवर्तनों का भी पाद-टिप्पणियों में उल्लेख होना चाहिए । 5. भूमिका - प्रत्येक पाठ - सम्पादन को पाठालोचन के द्वारा शुद्ध पाठ-निर्धारण कर लेने के पश्चात् विस्तृत भूमिका लिखनी चाहिए, जिसमें उसे सभी हस्तलिखित प्रतियों का विस्तृत परिचय देना चाहिए। अर्थात् उसे यह बताना चाहिए कि उसने किस-किस प्रति का उपयोग करके पाण्डुलिपि का सम्पादन किया है, वे प्रतियाँ कहाँ-कहाँ उपलब्ध हुई हैं, उनकी प्रामाणिकता क्या है तथा उनकी प्राचीनता आदि का कितना महत्त्व है। सभी 1 For Private And Personal Use Only

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