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40/अनुसंधान : स्वरूप एवं प्रविधि कार्य आगे बढ़ाया गया है, यह तथ्य आरंभ में दी जाने वाली भूमिका में अवश्य कर देना चाहिए। अपने शोध-कार्य की मौलिकता का प्रतिपादन भी भूमिका में ही कर देना आवश्यक
यों तो सभी विषयों के शोध-प्रबन्धों का टंकण-कार्य शुद्ध होना चाहिए, किन्तु दर्शनशास्त्र में संस्कृत के श्लोकों आदि का टंकण पूर्णतः शुद्ध हो, यह ध्यान रखना बहुत आवश्यक है। निष्कर्ष
वस्तुतः दर्शनशास्त्र की शोध-प्रविधि इतिहास, साहित्य आदि अन्य मानविकी विषयों के समान ही है। शोध प्रबन्ध-लेखन तथा अन्य सभी दृष्टियों से उसका प्रस्तुतिकरण भी उन सब बातों की अपेक्षा रखता है जिनकी अपेक्षा साहित्य के शोधार्थी से की जाती
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