________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
साहित्यिक अनुसंधान एवं समालोचन/55 उपरोक्त सिद्धान्तों के अनुसार शोध का अर्थ बहुत व्यापक हो जाता है। इसमें खोज, गवेषणा, अनुसंधान, अन्वेषण, अनुशीलन, विश्लेषण, मूल्यांकन तथा समीक्षा या समालोचना शब्दों के अर्थ अंश बनकर समा जाते हैं । डा. उदयभानु सिंह ने शोध के स्थान पर अनुसंधान शब्द का प्रयोग अधिक व्यापक अर्थ-पूर्ण माना है किन्तु मैं उनके मत से सहमत नहीं हूँ ,क्योंकि अनुसंधान का अर्थ पीछे लगाने,लक्ष्य बाँधने,लक्ष्य को खोज लाने तक ही सीमित है । यद्यपि शोध के समस्त अर्थ को उसमें स्थापित कर दिया है, किन्तु वस्तुतः अनुसंधान सत्य के निर्मल और संदेह-हीन पक्ष की उस स्थापना तक नहीं पहुंच पाता, जिस तक “शोध" शब्द पहुंचता है। यों अनुसंधान शोध का विरोधी नहीं है, किन्तु वह उस पूर्ण मार्ग का परिचायक नहीं है जिससे सत्योपलब्धि के पश्चात् निर्मल और संदेह-हीन ज्ञान का विस्तार होता है। यही कारण है कि उपाधि-परक अधिकांश अनुसंधान में “किसी महत्त्वपूर्ण सुनिश्चित विषय के तत्त्वाभिनिवंशी वैज्ञानिक अध्ययन,तत्सम्बन्धी तथ्यों के व्यवस्थित ढंग से अन्वेषण, निरीक्षण, परीक्षण तथा वर्गीकरण-विश्लेषण और उसके आधार पर प्रस्थापन-योग्य निष्कर्षों का प्रमाण-निर्देशपूर्वक तर्क-संगत उपसंस्थान होने पर भी वे ऐसे सत्यों को ही उभार कर रह जाते हैं, जिनसे कभी-कभी ज्ञान की हानि होती है, उसका स्वरूप जीवन-महत्त्व की दृष्टि से सदोष हो जाता है तथा उसके क्षेत्र की सीमा संकुचित होने लगती है। शोध में शोधन की दृष्टि अन्तिम सूत्र बनकर समस्त प्रक्रिया में समाई रहती है। अतः शोध शब्द ही उस उद्देश्य से ग्राह्य है, जिसके लिए विश्वविद्यालयों ने पूर्वाकित सिद्धान्त बनाये हैं। समालोचना की व्याख्या
“समालोचना" किसी कृति को सम्यक आलोचना करने की प्रक्रिया का नाम है। अज्ञात की खोज, फिर उसके अज्ञात तथ्यों का आख्यान,उस आख्यान के द्वारा अज्ञात सत्यों की प्राप्ति और उस सत्यान्वेषण का ऐसा विश्लेषण, जिससे ज्ञान-सीमा का निर्दोष विस्तार हो,“समालोचना" के अर्थ का विषय नहीं है,केवल इसका वह अंश समालोचना का विषय है,जिससे कृति का आख्यान होता है। तुलनात्मक समालोचना में उपलब्ध तथ्य की अन्य समान तथ्यों से तुलना भी की जा सकती है। किसी कृति का भली-भाँति अनुशीलन और अन्य कृतियों से उसकी तुलना में शोध के ज्ञान-विस्तार तक नहीं पहुँचाती,अतः समालोचना शोध की विस्तृत और व्यापक प्रक्रिया का एक अंग अवश्य है, किन्तु वह शोध की स्थानापन्न प्रक्रिया नहीं है। उद्देश्यों का अन्तर
समालोचना हमें किसी एक कृति या कृतिकार के समस्त कृतित्व से परिचित करा सकती है, किन्तु कृतित्व की सुदीर्घ परम्परा में उस कृति या कृतिकार का सत्य-विस्तार की 1. देखिए, अनुसंधान का स्वरूप, डा. उदयभानुसिंह, पृष्ठ 13. 2. अनुसंधान का स्वरूप, डा. उदयभानुसिंह, पृष्ठ 13.
For Private And Personal Use Only