Book Title: Anusandhan Swarup evam Pravidhi
Author(s): Ramgopal Sharma
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

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Page 80
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 70/अनुसंधान : स्वरूप एवं प्रविधि 5. हस्तलेख-परीक्षण-क्षमता- पाण्डुलिपि के सम्पादक को हस्तलेखों की प्राचीनता की परख करने की क्षमता भी रखनी चाहिए। किस काल में किस प्रकार के कागज, स्याही आदि का उपयोग होता था तथा पाण्डुलिपि में प्रयुक्त सामग्री वस्तुतः कितनी प्राचीन है, इन बातों का सही निर्णय करने के लिए सम्पादक में अपेक्षित ज्ञान आवश्यक है। 6. चित्रकला का ज्ञान- पाण्डुलिपि-सम्पादक को चित्रकला के ऐतिहासिक विकास का भी ज्ञान होना चाहिये, क्योंकि कई पाण्डुलिपियों में मूल सामग्री के साथ चित्र भी दिये जाते हैं। चित्रों के माध्यम से सम्पादक उस पाण्डुलिपि का लेखनकाल निर्धारित कर सकता है। ऐसा करने से उसे एक ही कृति की कई पाण्डुलिपियों में से अधिक प्राचीन पाण्डुलिपि का निर्धारण करने में सहायता मिल सकती है। कभी-कभी चित्रों से पाठ-सम्बन्धी संकेत भी मिल जाते हैं और उन संकेतों के आधार पर उन शब्दों को सरलता से समझा जा सकता है, जो अन्य प्रकार से समझ में नहीं आ रहे थे। 7. विवेक की प्रौढ़ता- पाण्डुलिपि-सम्पादक में विवेक की प्रौढ़ता भी अत्यन्त आवश्यक है। जो सम्पादक पाठ को समझने और सही रूप निर्धारित करने के लिए अनुकूल संतुलित विवेक नहीं रखता, वह इस कठिन कार्य में सफल नहीं हो सकता। 8. शारीरिक क्षमता- पाण्डुलिपि-सम्पादक को शरीर से भी पूर्णतः स्वस्थ होना चाहिये। उसकी आँखें पूर्णतः ठीक हों, ताकि वह हर प्रकार की लिपि को स्वयं पढ़ सके, उसके हाथ और अंगुलियाँ ठीक प्रकार से कार्य करती हों, जिससे वह स्वयं शुद्ध प्रतिलिपियाँ ले सके। उसे शरीर से इतना सक्षम भी होना चाहिए कि कई घंटे निरन्तर बैठकर प्रतिलिपियाँ जाँच सके और उनको पढ़ने,मिलान करने आदि में थकान का अनुभव न करे। इन शारीरिक क्षमताओं के अभाव में पाण्डुलिपि-सम्पादक को अन्य व्यक्तियों की सहायता पर निर्भर होना पड़ता है, जिससे उसके निर्णय संदिग्ध हो जाते हैं। 9. आर्थिक निश्चितता- पाण्डुलिपि-सम्पादक की आर्थिक स्थिति ऐसी होनी चाहिए जिससे वह पूर्णतः निश्चिन्त होकर अपने कार्य में लग सके। जिन लोगों को धन कमाने की धुन है,वे इस कठिन कार्य को हाथ में लेने की अपेक्षा उपन्यास लिखें या उसकी आलोचना करें तो अधिक उत्तम है। 10. मानसिक शांति- पाण्डुलिपि-सम्पादक के लिए यह भी अत्यन्त आवश्यक है कि उसका घर-बाहर का वातावरण ऐसा हो, जिसमें वह अपनी मानसिक शान्ति बनाये रख सके। जिस व्यक्ति का मन विभिन्न प्रकार की अशान्तियों का केन्द्र होता है, वह पाण्डुलिपि-सम्पादक की तपस्या पूर्ण नहीं कर सकता। 11. यश-कामना का अभाव- पाण्डुलिपि-सम्पादक के कार्य में रत व्यक्तियों को न तो जल्दी यशलाभ होता है और न उतना यश ही मिल पाता है, जितना कोई व्यक्ति चाहता है। यह तो पूर्णतः निष्काम साधना है। अत: वे व्यक्ति जो यश की लालसा रखते हैं, पाण्डुलिपि-सम्पादन में जल्दी यश प्राप्ति न होते देखकर अनेक अन्य ऐसे मार्ग अपनाते For Private And Personal Use Only

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