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पाण्डुलिपि-सम्पादन
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पाण्डुलिपि का अर्थ
मानव जाति का अधिकांश इतिहास लिपि के आविष्कार के कारण सुरक्षित है। जब तक यह आविष्कार नहीं हुआ था, तब तक श्रव्य एवं दृश्य साधनों का सहारा लिया जाता था। ये साधन स्मृति और विवेक की विशेष परम्परा पर निर्भर थे। लिपि का साधन प्राप्त हो जाने पर, मनुष्य ने अतीत और वर्तमान के जीवन की विविध संग्रहणीय घटनाओं, भावनाओं और विचारणाओं को लिखित रूप देना प्रारम्भ किया। इस प्रकार मनुष्य के समस्त साहित्यिक, सांस्कृतिक, कलात्मक, ऐतिहासिक, राजनैतिक, सामाजिक तथा ज्ञान-दर्शन-सम्बन्धी प्रयत्न लिपिबद्ध हुए। उनके इस लिपिबद्ध स्वरूप को ही आज हम “पाण्डुलिपि” की संज्ञा देते हैं।
यद्यपि “पाण्डुलिपि” का मूल अर्थ है- लेख आदि का पहला रूप, तथापि अधुनातन हर प्रकार की हस्तलिखित सामग्री को “पाण्डुलिपि” कहा जाता है।
अर्थ-विस्तार का इतिहास
लिपि के आविष्कार के पश्चात् मनुष्य ने संग्रहणीय विवरणों को विभिन्न पटलों पर अंकित करना आरम्भ किया। भारत में सबसे प्राचीन लिपिचिह्न मोहेंजोदडो तथा हडप्पा की संस्कृति में मिलते हैं। इन दोनों स्थानों की खुदाई में कुछ ऐसी मुद्राएँ, ताँबे की टिकियाँ तथा मिट्टी के बर्तनों के खण्ड प्राप्त हुए हैं, जिन पर एक विशेष लिपि में कुछ विवरण अंकित हैं। सर जॉन मार्शल के अनुसार, “सिन्धुघाटी के लेखक मिट्टी की टिकियों के समान अन्य सामग्री के अभाव में, मिट्टी के स्थान पर भोजपत्र, ताड़पत्र, वृक्षों की छाल, लकड़ी अथवा कपसिपट जैसी अल्पजीवी सामग्री का उपयोग करते होंगे,जो कालान्तर में स्वाभाविक रूप में नष्ट हो गयी होगी।" एक अन्य विद्वान मैकी ने अपनी “इण्डस सिविलिजेशन” नामक पुस्तक में यही बात कुछ इस प्रकार दोहराई है : 1. सर जान मार्शल, मोहेंजोदड़ो, पृष्ठ 1-40.
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