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साहित्यिक अनुसंधान एवं पाठालोचन/63 वास्तव में पाठालोचन आज एक शास्त्र या विज्ञान बन चुका है। जिस प्रकार किसी शास्त्र में पूर्व निर्धारित सिद्धान्त या नियम होते हैं, उसी प्रकार पाठालोचन में भी नियम रहते हैं। जहां वे नियम पूरे या खरे नहीं उतरते, वहाँ प्रयोग करके नये नियम बनाने पड़ते हैं। इसलिए पाठालोचन विज्ञान भी है। इस शास्त्र का सही ज्ञान साहित्यिक शोध के लिए बहुत आवश्यक है। इसलिए शोध-निर्देशक (गाइड) बनने से पहले पाठालोचन का जान लेना एक शर्त होनी चाहिए।
पाठालोचन के लिए भाषा और लिपि का अच्छा ज्ञान भी होना चाहिए। जिस भाषा की पाण्डुलिपि है, उसके शब्दों के तत्सम और तद्भव रूप जानना अत्यन्त आवश्यक है। उदाहरण के लिए, हिन्दी भाषा की पाण्डुलिपि को पढ़ने के लिए हिन्दी के प्राचीन रूपों को जानना आवश्यक है। हिन्दी के मध्यकालीन साहित्यिक रूप थे-बजभाषा, अवधी, बुंदेली, डिंगल, पिंगल आदि । जो शोधार्थी इन रूपों का सही ज्ञान नहीं रखता, वह शुद्ध पाठ निर्धारित नहीं कर सकता। साथ ही यह भी आवश्यक है कि उसे संस्कृत तथा उर्दू का भी अच्छा ज्ञान हो। आजकल इस प्रकार के विद्वानों की बहुत कमी हो गई है। इसलिए उनके शिष्य भी सही पाठ को निर्धारित करके किसी भी साहित्यिक रचना को शुद्ध रूप में नहीं पढ़ पाते। शोधार्थी को चाहिए कि वह इन अभावों को पूरा करे। उसे मध्यकालीन हिन्दी रूपों तथा संस्कृत एवं उर्दू का सामान्य ज्ञान अवश्य प्राप्त करना चाहिए।
भाषा के साथ ही साथ लिपि के पुराने रूपों को जानना भी बहुत आवश्यक है। देवनागरी या नागरी लिपि भारत की बहुत पुरानी तथा वैज्ञानिक लिपि है। यह केवल हिन्दी की ही नहीं, वैदिक, संस्कृत,प्राकृत, पाली, अपभ्रंश, मराठी आदि भाषाओं की भी लिपि है। इस लिपि का विकास किन-किन रूपों में हुआ है, यह भी साहित्यिक शोध करने वाले के लिए बहुत आवश्यक है । लिपि-रूपों का ज्ञान प्राप्त किये बिना वह पुराने हस्तलिखित ग्रन्थों को पढ़ ही नहीं सकता।
लिपि में अक्षरों की तरह ही अंकों का भी विशेष महत्त्व है। अंकों में पुराने हस्तलिखित प्रन्थों का समय दिया जाता है,रचनाकारों की जन्म एवं मृत्यु की तिथियां बताई जाती हैं तथा लिपि का समय भी दिया जाता है। इसलिए यह भी बहुत आवश्यक है कि हम देवनागरी के अंकों के वर्तमान तथा प्राचीन रूपों को पहचानें। आजकल अंग्रेजी की रोमन लिपि के ही अंक चल रहे हैं और विद्यालयों में भी देवनागरी अंक सिखाने की प्रथा बद होती जा रही है। इस प्रकार की शिक्षा से हमारे अंक ही भुला दिए जाएंगे, जिसका फल यह होगा कि हम अपने पुराने ग्रन्थों के अंक नहीं समझ पाएंगे। अतः इस दिशा में भी सावधानी की आवश्यकता है।
संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि साहित्यिक शोध के लिए पाठालोचन एक अत्यन्त आवश्यक शास्त्र है जिसे हर शोधार्थी को जानना चाहिए।
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