Book Title: Anusandhan Swarup evam Pravidhi
Author(s): Ramgopal Sharma
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

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Page 56
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10 भाषिकी अनुसंधान-प्रविधि भाषा मानव-समाज की सबसे बड़ी सम्पत्ति है। मनुष्य को अन्य जीवों की तुलना में यह सबसे बड़ा वरदान मिला है। सभी व्यक्ति अपनी मां से भाषा सीखना आरंभ करते हैं। शैशव में ही जिनके ऊपर से मां का अंचल हट जाता है, वे भी किसी-न-किसी पालन-पोषण-कर्ता परिवार से भाषा प्राप्त करते हैं। संसार के किसी भी देश में चले जाइए, वहाँ के निवासी भाषा-सूत्र में ही आबद्ध समाज का अंग मिलेंगे। जहाँ ईश्वर ने इवनी महत्त्वपूर्ण भाषा-सम्पदा मनुष्य को दी है, वहीं उसने एक बहुत भारी भूल भी की है। वह भूल यह है कि संसार के सभी मनुष्यों का उसने एक ही भाषा नहीं दी। भौगोलिक परिस्थितियों तथा अन्य अनेक ऐतहासिक कारणों से संसार के विभिन्न देशों में विभिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं। इतना ही नहीं, एक भाषा के भी अनेकानेक बोली-रूप मिलते हैं और वे रूप भी बदलते रहते हैं। फलतः दीर्घकालोपरान्त मूल भाषा का रूप भी बदल जाता है। एक ही काल में भी सामाजिक व्यवहार की भाषा साहित्यिक व्यवहार की भाषा से भिन्न हो जाती है। धनी-निर्धन, श्रमिक-बुद्धिजीवी आदि की भाषाओं में भी स्तर एवं व्यंजना का अन्तर पाया जाता है। इन सब बातों को ध्यान में रखकर देखें तो भाषिकी-सम्बन्धी शोध का क्षेत्र बहुत विस्तृत प्रतीत होने लगता है, किन्तु यह वास्तविकता भी है। मानविकी के विभिन्न विषयों में यही विषय सर्वाधिक गंभीर एवं व्यापक शोध की अपेक्षा रखता है। इस विषय का अनुसंधान किसी एक प्रक्रिया से ही पूर्ण नहीं हो सकता। भाषा का लिखित रूप ग्रन्थों में मिलता है। शब्द प्रयोग और वाक्य रचना तक भाषिकी शोध को सीमित नहीं किया जा सकता। अर्थ के विस्तार और रंजना की संभावनाओं को भाषा की गहराई तक पहुँचने के लिए समझना होता है । अतः ग्रन्थों में भी साहित्यिक ग्रन्थों का विशेष महत्त्व है, क्योंकि उनकी भाषा का रूप निश्चित होता है तथा उसके प्रयोग का काल-परिज्ञान भी रहता है। अतः साहित्य की विभिन्न विधाओं के समान शोध-प्रविधि से साहित्यिक या लिखित भाषा का अध्ययन किया जा सकता है। किन्तु जिन For Private And Personal Use Only

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