Book Title: Anusandhan Swarup evam Pravidhi
Author(s): Ramgopal Sharma
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

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Page 33
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मानविकी विषय और अनुसंधान/23 अनुभूतियाँ समेट कर जब चिन्तन-केन्द्र पर अपने मन को स्थिर करता है, तब दर्शन का जन्म होता है। अतः यह समझ लेना चाहिए कि मनुष्य की सुख-दुःखात्मक अनुभूतियाँ ही दर्शन की विभिन्न विचार-धाराओं में अजस्त्र रूप से प्रवाहित रहती हैं। इसके विपरीत साहित्यकार जब अपनी अनुभूतियों को अभिव्यक्ति देता है, तब उसके विचार ही नहीं, दार्शनिकों के विचार भी उसकी भाव-भूमि के मूल में व्याप्त हो जाते हैं। किसी भी देश के साहित्य को लें,हम पाएंगे कि उसकी अभिव्यक्ति का विराट् पटल किसी-न-किसी दार्शनिक तत्त्व से ही परिपुष्ट हुआ है। अतः साहित्य से दर्शन को उसी प्रकार अलग नहीं किया जा सकता, जिस प्रकार जीवित रहना है तो प्राण और शरीर की अभिन्नता को नहीं तोड़ा जा सकता। जो साहित्य जितना अधिक श्रेष्ठ होता है, उतना ही उसका दर्शन से अधिक सम्बन्ध होता है। यहाँ यह नहीं भूलना चाहिए कि पूर्व निष्पादित दार्शनिक तथ्य तो साहित्य में आकर उसका निर्माण करते ही हैं, साहित्य भी नई अनुभूतियों से रस देकर नये दार्शनिक तथ्यों को जन्म देता है। इस प्रकार साहित्य और दर्शन परस्पर एक-दूसरे के पोषक और विकासकर्ता हैं। यही कारण है कि श्रेष्ठ साहित्यकार वही हो सकता है, जो एक गंभीर दार्शनिक प्रवृत्ति का व्यक्ति हो, तथा श्रेष्ठ दार्शनिक भी वही हो सकता है,जो साहित्यिक मनोवृत्ति का व्यक्ति हो, जिसने अनुभूतियों में रमण की शक्ति तथा कल्पना के अन्तर्चक्षु प्राप्त किये हों । विश्व के सभी महान् साहित्यकारों के साहित्य को देख लीजिए, वे श्रेष्ठ मानव-दर्शन के प्रसारक रहे हैं तथा महान् दार्शनिकों ने सदा महान् अनुभूतियों को रूपायित किया है। मानविकी विषयों में शोध ____ मानविकी की सीमा में आने वाले जिन विषयों की पीछे चर्चा की गई है, उनमें शोध की दृष्टि से भी बहुत समानता है। साहित्य, इतिहास, दर्शन, चित्रकला, संगीत-कला आदि के क्षेत्रों में सामग्री के लिए अतीत और वर्तमान दोनों पर निर्भर रहना पड़ता है। इन विषयों में हमारी शोध-यात्रा प्रयोग या सर्वेक्षण के आधार पर नहीं हो सकती जिस प्रकार विज्ञान या समाजशास्त्र के विषयों में होती है। विज्ञान में प्रयोगशाला आवश्यक होती है और उसमें परीक्षण पुनरीक्षण तथा बार-बार प्रयोग की पद्धति अपनाई जाती है। समाजशास्त्रीय या सामाजिक विज्ञानों में भी पूरा समाज एक प्रयोगशाला बन जाता है। उसमें विभिन्न नमूने, मत, कथन, विचार, प्रमाण आदि लोक-जीवन से ग्रहण किये जाते हैं जिसके लिए विशेष प्रश्नावली आदि का सहारा लिया जाता है। अनुशीलन करते समय आँकड़े निकालने तथा उनसे किन्हीं तथ्यों तक पहुँचने की चेष्टा की जाती है। मानविकी विषयों में शोध की दिशाएँ और पद्धतियाँ इनसे भिन्न रहती हैं । साहित्य के क्षेत्र में शोधकर्ता को शब्द और अर्थ के भाषा-जगत में विचरण करना पड़ता है तथा विभिन्न सन्दर्भो के सहारे मौलिक व्याख्याएँ करके निष्कर्ष निकालने पड़ते हैं। इन निष्कर्षों तक पहुँचने के लिए लिखित या मुद्रित शब्द-सामग्री ही काम आती है। इतिहास सम्बन्धी शोध के लिए भी For Private And Personal Use Only

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