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इतिहास की अनुसंधान-प्रविधि/35 ला दिये जाने के पश्चात् भी नवीन विश्लेषण एवं व्याख्या की अपेक्षा रखते हैं। हर तथ्य में कोई-न-कोई विशेष एवं रहस्यात्मक बात हो सकती है, जिस पर अब तक प्रकाश न पड़ा हो। इतिहास के शोधार्थी को गंभीर दृष्टि से तथ्य-विश्लेषण करके उपयुक्त विवेचन द्वारा उसी को प्रकाश में लाना सार्थक शोध का कार्य होता है। विश्लेषण करते समय ही यह देखना होता है कि विभिन्न तथ्यों का पूर्वापर सम्बन्ध क्या है,या नहीं भी है । कोई भी तथ्य स्वयं में इतना स्पष्ट नहीं हो सकता कि उसमें छिपे रहस्य बिना विश्लेषण किये स्वयं प्रकट हो जाएँ, साथ ही विभिन्न तथ्यों में कारण-कार्य सम्बन्ध की तलाश भी कभी-कभी सार्थक सिद्ध होती है। यह कार्य भी उचित विश्लेषण और विवेचन से ही संभव हो पाता है। विभिन्न घटनाओं का प्रतिफलन तथ्यों के रूप में होता है और विभिन्न तथ्य नवीन घटनाओं के जनक भी बनते हैं। शोधार्थी की विवेक-पूर्ण दृष्टि उचित विश्लेषण करके उसे सही परिणामों तक पहुंचाती है।
वस्तुतः विश्लेषण और विवेचन से तथ्यों का उपयुक्त मूल्यांकन करने का मार्ग प्रशस्त होता है तथा नये तथ्य प्रकाश में आते हैं। इतिहास की शोध-प्रविधि सामाजिक विज्ञानों की शोध-प्रविधि से पर्याप्त भिन्न है। इसमें प्रश्नावली आदि को आधार बनाकर सांख्यिकीय-पद्धति नहीं अपनाई जा सकती,न सिद्धान्त-निरूपण की आवश्यकता होती है। अत: इतिहास के शोधार्थी को बहुत तटस्थ होकर तथ्यों का विश्लेषण व परीक्षण करना होता है।
विश्लेषण-विवेचन और परीक्षण के उपरान्त शोधकर्ता शोध के परिणामों पर पहुंचने लगता है। ये परिणाम व्यक्ति-निष्ठ न होकर वस्तुनिष्ठ होने चाहिएँ। इसलिए इतिहास की शोध में भाषा का भी बहुत महत्व है। शोधार्थी को बहुत संयत भाषा में परिणामों की प्रस्तुति में संलग्न होना पड़ता है। इतिहास लेखन की भाषा कभी-कभी वर्तमान स्थितियों,परिस्थितियों एवं विभिन्न राजनीतिक प्रभावों से बोझिल हो जाती है तथा पर्याप्त ईमानदारी से किये गये अध्ययन के परिणाम भी शोधार्थी जब लिखने बैठता है, तब भाषा में दुर्बलता आ जाने के कारण दूषित हो जाते हैं। अतः विवेचन से उपलब्ध परिणामों की शुद्धता की रक्षा के लिए भाषा पर सम्यक् अधिकार एवं संतुलन बनाये रखना बहुत आवश्यक होता है।
किसी भी विषय का शोध-कार्य तब तक पूर्ण नहीं हो सकता जब तक विवेचन के सोपान तक पहुंची सिद्धियाँ उचित निष्कर्षों तक न पहुँचें। अतः शोधार्थी को अपने अध्ययन के परिणामों को संयत ढंग से प्रभावशाली भाषा में स्पष्ट निष्कर्षों के रूप में प्रस्तुत करना भी अपेक्षित होता है।
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